मेरी बात — “हॉउस मैनेजमेंट की करें तैयारी”- अरुण कुमार ( लेखक सह पत्रकार)
अपने लेख पेट की भूख के बाद हाउस मैनेजमेंट ट्रेनिंग की बात अगर करेंगे तो मेरे उस पुराने आर्टिकल पेट की भूख की कुछ खट्टी मीठी बातें अवश्य आपसबों के जेहन में आ गई होगी कि कैसे उस समय से लेकर आज भी मेरी लाइफ में कुछ ज्यादा नहीं बदला हैँ अगर आज भी लगभग बीते 15 वर्ष बीत जाने के बाद भी मैं अपना अभिभावक धर्म को अगर सही से निभा पा रहा हूँ तो ये किसी उपलब्धि से कम भी नहीं हैँ उसपर ये रोजी रोटी की जद्दोजहद में उस परिस्थिति से लड़ते हुए प्रतिदिन दो चार होते हुए भी अगर मैं अपना पिता धर्म सही से निभा पा रहा हूँ तो यही मेरे लिए सबसे बड़ा जमा पूंजी हैँ और किसी बड़ी उपलब्धि से कम भी नहीं हैँ वैसे मुझे कुछ लोग कई तरह की सलाह भी देते हैँ किन्तु मैं उन सलाह देने वालों की बातों पर हँसता हूँ चुकि मैं थोड़ा अलग हूँ और जिद्दी भी अगर मैने एक बार कुछ ठान लिया तो फिर वहीँ करूँगा जो मेरा दिल कहेगा जबकि एक कहावत हमारे बिहार में अक्सर बोली जाती हैँ कि बाढ़े पूत पिता के धर्मे और खेती उपजे अपने कर्मे तो यही आज के इस कलयुग की सच्चाई भी हैँ हालांकि आज कुछ लोगों की सोच मेरे बच्चे और मेरे ही हैँ बच्चे में इतने मसगुल हो गए हैँ कि उन्हें समाज से कोई मतलब सा नहीं रहा हैँ जबकि समाज का ताना बाना स्वयं के घर से ही शुरू होता हैँ और भविष्य में उसी घर पर आकर खत्म भी हो जाता हैँ ऐसा मेरा मानना हैँ वहीँ कुछ लोग पैसे को लेकर इतने संजीदा हो गए हैँ कि उन्हें केवल अपना चिंता हैँ ना की किसी और का और यही अपना अपना एकदिन उन्हें उस सच्चे सपने की याद कराने के लिए काफी हो जाता हैँ जो उन्होंने दिन के समय सपने देखें होते हैँ चुकि परिवार से बड़ा कोई सपना नहीं और परिवार से बढ़कर कोई अपना नहीं इसी कहावत को चरितार्थ अगर हमसब करें तो समस्या कितनी भी बड़ी आएँगी आप सब हँसते खेलते उसे झेल जाएंगे किन्तु ज़ब परिवार में ही बिखराव अगर हो तो फिर ना आप सही से रह पाएंगे और ना ही आपका परिवार जी हाँ आज पैसा ही सबकुछ हैँ किन्तु बहुत कुछ भी नहीं हैँ इसलिए अपने महत्व को जाने और परिवार को समझकर काम करें तो समाज आपको जानेगा और पहचानेगा अन्यथा किसी अनजान भवर में फंसकर आप सब विलुप्ति की कगार पर चले जाएंगे ऐसा मेरा मानना हैँ कुछ लोग मैं में ही जिए जा रहे हैँ तो ये आपकी भूल हैँ आज भी हमसबों को हम बनकर जीने की आदत डालनी चाहिए ये मेरी उनलोगों को विशेष रुप से सलाह हैँ जो की केवल मैं में ही जिए जा रहे हैँ और केवल अपने बेटा बेटी की चिंता में घुट घुट कर मरे भी जा रहे हैँ कितनी बड़ी विडंबना हैँ दोस्तों इस कलयुग में इंसान अपने भटकाव की ओर अग्रसरित हुए जा हैँ जबकि अभी भटयुग आया भी नहीं और यही नहीं इंसान उस वर्तमान को छोड़कर भविष्य की ओर मुखर हो चला हैँ जिस भविष्य का उन्हें आकलन भी नहीं हैँ तो आज की इस कड़ी में एक बात तो स्पष्ट हो जाती हैँ कि मैं नहीं हम पर विश्वास करें और सबके विश्वासी बनने का अवसर अवश्य प्राप्त करें अन्यथा एकदिन तो सभी को गुमनामी के भंवर में खो ही जाना हैँ!

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