मेरी बात – ” एक इंसान का अनुमान और अनुभव ” – लेखक सह पत्रकार ( अरुण कुमार )
मेरी बात – एक इंसान का अनुमान और अनुभव = लेखक सह पत्रकार ( अरुण कुमार )
आज का यह टॉपिक एक इंसान के अनुमान और अनुभव के बारे में लिख रहा हूँ और मैं यहाँ पर यह आपसबों को बता देना चाहता हूँ कि इंसान का अनुमान गलत हो सकता हैँ किन्तु उस इंसान का अनुभव कभी गलत नहीं हो सकता हैँ जिसने कि धुप और ठंड की मार को स्वयं अपने ऊपर झेल कर रक्खा हो वहीँ अब बात आती हैँ कि उस इंसान की जिद्द के आगे तो ऊपर वाला भी झुकने को मजबूर हो जाता हैँ जो की इंसान अपने इष्ट देव को ही अपना पालन हार मान रक्खा हैँ और उसी पालन हार के अनुरूप वह इंसान कार्य कर रहा होता हैँ जबकि एक इंसान का अनुभव यह कहता हैँ कि अगर उसने उस दूसरे इंसान के व्यक्तित्व को ना समझकर औरों की बातों को अपने अंदर समेट कर कार्य कर रहा होता हैँ तो समय की विडंबना कहिये या व्यक्तिव का दोष ये दोनों ही उस इंसान पर लागू हो जाती हैँ वहीँ इसका एक दूसरा पहलु यह भी हैँ कि एक इंसान केवल दूसरे इंसान के बारे में अनुमान ही लगाते रह जाता हैँ कि वो दूसरा इंसान कितना पानी में हैँ जबकि एक अनुभवी इंसान स्वयं को परिभाषित करते हुए अपने कार्य को अंजाम देता हैँ और तब तक उस कार्य को नहीं छोड़ता हैँ जबतक कि उस कार्य का समापन सम्पन्नता पुर्वक सुचारु रूप से ना हो जाए यहाँ मैं एक बात तो आज साफ साफ यह कह देना चाहता हूँ कि किसी के प्रति अनुमान लगा कर स्वयं में बुड़वक के पात्र अपने आपको ना बने क्योंकि अगर उस अनुभवी इंसान को जरा सा भी आपके करनी का आभास हो गया तो वह इंसान अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए दूसरे इंसान को बर्बाद करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा ये भी एक कड़वी उदाहरण हैँ और सच्चाई हैँ वहीँ अनुमान के केवल दो पैर होते हैँ और अनुमान कहता हैँ कि ये होगा किन्तु अनुभव के चार पैर होते हैँ और अनुभव किसी ओर का मोहताज नहीं होता हैँ वो केवल उस इंसान के अंदर विराजमान होता हैँ जिन्होंने अपनी जिंदगी को बहुत ही खुद्दारी के साथ जिया हैँ, जी रहा हैँ और जिए जा रहा हैँ और किसी के बारे में इतनी जल्दी कोई भी अनुमान नहीं लगा लेना चाहिए कि एक इंसान को अपना जीवित धर्म को भूलना पड़े ✍️✍️
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