मेरी बात..रिश्ते और रिश्तेदारों की भीड़ में ख़ुशी का वो एक पल ?? @लेखक सह पत्रकार, अरुण कुमार
मेरी बात,, रिश्तों में ख़ुशी के पल की अहमियत,, यह टॉपिक सच मायनों में काफी रोमांच से भरा हैँ वो इसलिए क्योंकि रिश्ते और रिश्तेदार स्वयं में एक कड़ी की भांति एक दूसरे से जुड़े रहते हैँ और यही जुड़ाव रिश्तों में खुशी का वह पल लेकर आता हैँ जिसकी कल्पना सभी रिश्तेदार मिलकर करते व देखते हैँ और उससे जुड़ाव को हमेंशा ललायित भी रहते हैँ चुकि आपका ख़ुश रहना ही आपके विरोधियों के लिए किसी वज्रपात से कम भी नहीं हैँ किन्तु अगर हम सब बात करें उस पल की ज़ब एक इंसान स्वयं उस खुशनुमा पल को याद कर भाऊक हो जाता हैँ जब उसने वो अपना कीमती समय उस रिश्तों की एक एक धागा को गूथने और बनाने में लगा दिया होगा अपितु सच में वह पल उस इंसान के लिए किसी बोध और सम्मबोध से भी कम नहीं हैँ जब वो इंसान अपना सब कुछ उस रिश्ते और रिश्तेदारों पर न्योछावर कर दिया होगा जिसकी कल्पना मात्र से ही वह इंसान स्वयं में अभिभूत हो जाता हैँ एक रिश्ता बचाने को लेकर ना जाने कितने रिश्तेदारों के सामने नतमस्तक होना पड़ता हैँ यह तो आप सब उससे ही समझ सकते हैँ जिसने की रिश्ते को बचाने के लिए अपना सब कुछ त्याग कर दिया हैँ यद्धपी उस इंसान की कद्र ना ही रिश्तेदार ही कर पाते हैँ और ना ही रिश्ते को चलाने वाले फिर कमी कहाँ रह गई हैँ यह भी समझ से परे हैँ किन्तु एक अच्छा रिश्ता ही एक अच्छे रिश्तेदार को जन्म देने और जोड़ने का कार्य करता हैँ परन्तु मगर व अगर के चक्कर में पड़कर वहीँ रिश्तेदार उस रिश्ता को खत्म करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैँ किन्तु सत्यता तो यह हैँ कि एक रिश्ता को बनाने में बहुत समय लगता हैँ और तोड़ने के लिए समय का वही एक पल ही काफी होता हैँ तो दोस्तों उसी रिश्ते में खुशी ढूंढे और अपना जीवन को खुशिपूर्वक जिए जिससे कि आपसबका जीवन सुखिपूर्वक बीत सके एवं खुशनुमा हो सके और आपके विपक्षी भी आपके कायल हो जाए,,
लेखक सह पत्रकार अरुण कुमार,

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