मेरी बात,,,, चुनाव का समय एक चुनावी स्टंट या जनता के विलुप्त हुए मुद्दे,,,, एक कटाक्ष,,,,,अरुण कुमार लेखक सह पत्रकार,
मेरी बात,,,,, चुनाव का समय एक चुनावी स्टंट या जनता के मुद्दे,,,, साधारण सी भाषा में अगर हमसब यह समझने की कोशिश करते हैँ तो एक बात तो यहाँ साफ हो जाती हैँ कि जब जब चुनाव की बिगुल बजती हैं तो किया आम और किया खास सभी इस हमाम में उतर जाने को आतुर रहते हैं किन्तु ये नेताजी लोग एक कदम उस सच्चाई से बेखबर रह जाते हैँ जब इन नेताओं ने उस आम आदमी से यह सिर्फ एक वादा करके आए थे कि मैं आपके सभी सुख और दुःख में आपसबों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ा रहूँगा किन्तु सही मायनों में ऐसा किधर होता हैँ चुनाव के समय एक नेता जी की अभिनेता बनकर उभरते हैँ और चुनाव को जीतकर कपूर के सुगंध की तरह गायब हो जाते हैँ और फिर छोड़ जाते हैँ उस आम जनता को उन यादों के साथ जो दो या तीन महीने वो पल जो वे जनता जनार्दन ने उन नेताजी के साथ बिताया था अब जबकि एक बार फिर से चुनावी विगुल बज चूका हैँ और अभी से सभी नेताजी जोर आजमाइस में लग गए हैँ यह भी एक इन नेताजी के किरदार का एक दूसरा पहलु अभी से दिखाई दे रहा हैँ अब किन्तु परन्तु और अगर मगर को किनारे रख दिया जाए तो भी आम जनता पहले भी असमंजस से थी और आज भी असमंजस में ही हैँ कि किया करें,किया ना करें और किसके लिए करें, मगर एक बात तो यहाँ साफ हो जाती हैँ कि एक आम जनता इन नेताओं से किया किया सपने की आशा नहीं रखती हैँ तो किया ये सब नेताजी मिलकर उन आम जनमानस को क्यों यकीन नहीं दिला पाते हैँ कि कोई नहीं मैं आपके साथ खड़ा हूँ अब इस चुनावी माहौल के बारे में अंत में यही लिखना और कहना चाहता हूँ कि जनता तो तिल तिल जलती हैँ और जल रही हैँ किन्तु कोई तो उस जलन पर पानी और मलहम लगाए जिसकी चाहत में आज भी ये आम जनता आस लगाए बैठी हैँ,,,,,,, अरुण कुमार लेखक सह पत्रकार,, मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क,,
शाखा प्रबंधक,, भागवत ग्रुप कारपोरेशन,,,
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