सोलह दिवसीय गणगौर पूजा का समापन
बराकर -राजस्थानी परम्परा पर आधारित सोलह दिवसीय गणगौर पूजा का समापन मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ हुआ. इस दौरान सुहागन महिलायें एवं कुवांरी कन्याओं द्वारा विधिपूर्वक इस्सर और गोरा जी को दूध और जल से स्नान कराया और गणगौर के गीत के साथ पर्व का समापन किया. बताया जाता है कि कुवांरी कन्याएं पूरे सोलह दिन सुबह एवं संध्या इस्सर और गोराजी को जल और भोग चढ़ाती है, साथ ही इनके गीतों को गाकर गणगौर का पूजन करती है. अंतिम दिन पूजा करने वाली कुवांरी कन्याये सोलह कुएं से जल लाकर इस्सर और गोरा जी को पिलाती है. इसके बाद पूरे विधि- विधान के साथ इनकी विदाई कर इन्हें नदी में विसर्जन करती है. होलिका दहन के दूसरे दिन से गणगौर पूजा का आरम्भ होती है. इस दौरान प्रथम वर्ष विवाहिता युवती पहली गणगौर अपने मायके में पूजती है. आयोजको ने बताया कि अपने पति की दीर्घायु उम्र के लिए इस पूजा को किया जाता है. गणगौर के समापन के बाद विवाहिता अपने पीहर चली जाती है, ऐसी परम्परा वर्षों से समाज में चली आ रही है. जिसका निर्वाह आज भी हमारा राजस्थानी समाज करता आ रहा है.
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