सम्पादकीय : पर्यावरण के प्रति एकजुट हो हमारा समाज

आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि जब भी कोई व्यक्ति पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर कोई आवाज उठाता है तो वह अकेला ही अपनी लड़ाई लड़ता है, हमारे सुबुद्धि संपन्न समाज का सहयोग एवं समर्थन उन्हें कम ही प्राप्त होता है। अंडाल में भी फिलहाल ऐसा ही हो रहा है। अंडाल के विभिन्न हिस्से में लोग अपने-अपने स्तर से तालाब भराई के विरूद्ध लड़ रहे हैं परंतु उनमें एकजुटता न होने के कारण एवं समाज का भरपूर सहयोग न मिलने के कारण उनकी लड़ाई कमजोर पड़ जाती है या वे अकेले पड़ जाते हैं। जबकि तालाब हमारे जीवन का बहुत ही अभिन्न हिस्सा है। आज के समय में भू-गर्भ स्तर जिस तेजी से गिर रहा है यदि तालाबों का संरक्षण तुरंत नहीं किया गया तो आने वाले समय में अंडाल क्षेत्र भी गंभीर जलसंकट से गुजरेगा।वर्तमान समय में ही गर्मी के दिनों में चापाकलों एवं मोटर पंपों पर काफी लोड बढ़ जाता है जबकि अभी कुछ तालाब बचे हैं। ये सारे यदि भर दिये गये और उन पर मकान बना दिये गये तो भू-गर्भ जल-स्तर में जो गिरावट आयेगी सो अलग एवं भू-गर्भ जल स्तर पर बढ़ती आबादी का जो अतिरिक्त दबाव पड़ेगा उसके कारण एक गंभीर जल संकट उत्पन्न होगा जिसकी भरपाई दामोदर नदी के पानी सप्लाई से नहीं हो पायेगी।
चंद पैसे के लालच में हमारे कुछ नेतागण प्रशासनिक अधिकारी की मिलीभगत से अंडाल के तालाबों की भराई कर रहे हैं। यह कार्य पूर्ववर्ती सरकार के समय से ही हो रहा है किन्तु वर्तमान सरकार में इस कार्य ने ज्यादा जोर पकड़ ली है वह भी उस समय जब हमारी मुख्य मंत्री ममता बनर्जी स्वयं भू-संस्कार मंत्रालय की मंत्री हैं एवं उन्हें सभी अधिकारियों एवं सख्त निर्देश दिया हुआ है कि जहाँ कहीं भी अवैध तालाब भराई हो उस पर तुरंत कार्यवाही करें। परंतु व्यवहार में तो यही देखने को मिल रहा है कि तालाब भराई की शिकायत मिलने के बाद भी सभी विभाग न केवल लापरवाही बरत रहे हैं बल्कि कार्यवाही में इतनी देर कर रहे हैं कि तब तक तालाब भराई का कार्य पूरा हो जा रहा है एवं उस मकान भी बन जा रहे हैं।
वर्ष 2016 में तत्कालीन कृषि मंत्री पूर्णेंदु बसु ने एक मिडिया साक्षात्कार में बयान दिया कि प0 बंगाल के चार जिले पुरूलिया, प0 मिदनापुर, बांकुड़ा और बर्दवान गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं।
केवल सरकार, नेता एवं सरकारी अधिकारियों पर निर्भर रहकर हम अपने पर्यावरण की सुरक्षा नहीं कर पायेंगे। इसमें हर आम और खास की भागीदारी सुनिश्चित करनी पड़ेगी एवं एक जोरदार मुहिम चलानी पड़ेगी तभी जाकर हम अपने पर्यावरण को बचा पायेंगे अन्यथा हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक गंभीर जल संकट तोहफे में देने के लिए वचनबद्ध हो जायेंगे।

Last updated: सितम्बर 1st, 2017 by Pankaj Chandravancee
Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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