झारखंड राज्य आजीविका मिशन, ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड सरकार के तत्वाधान में चौपारण प्रखंड के मानगढ़ पंचायत अंतर्गत मानगढ़ गाँव की संगम आजीविका उत्पादक समूह के सदस्यों ने मशरूम की खेती करने का साहसिक कदम उठाया है। संगम आजीविका उत्पादक समूह मानगढ़ गाँव की महिला किसान मशरूम की खेती कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं। बल्कि ये महिला किसान क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनी हुई हैं। महिलाओं के इस कार्य में उनके पारिवारिक सदस्य सहित अन्य लोग भी काफी सहयोग कर रहे हैं। घरों की दहलीज में बंद रहनेवाली ये महिलायें ना सिर्फ घरों के अन्दर मशरूम उगाने का काम कर रही हैं। बल्कि इसकी अच्छी तरह देखभाल करते हुए आमदनी लेने का काम भी कर रही हैं। संगम आजीविका उत्पादक समूह के 15 महिला किसान इस समय मशरूम की खेती करने का काम कर रही हैं। मानगढ़ गाँव निवासी बबीता देबी, प्रीति देवी, रीना देवी, जयंती देवी, विमला देवी, विनीता देवी, रेवंती देवी और सुनीता देवी आदि मशरूम उगाने का काम कर रही हैं।
कम लागत एवं कम समय में संगम आजीविका उत्पादक समूह की अच्छी आमदनी होगी
महिला किसानों ने बताया कि काफी कम लागत एवं कम समय में मशरूम के उत्पादन से अच्छी आमदनी उनलोगों को मिल जा रही है। संगम आजीविका उत्पादक समूह के सदस्यों ने बताया कि एक यूनिट मशरूम की खेती करने में महज पंद्रह हजार रुपए की लागत लग रही है। जबकि इसके एक यूनिट उत्पादन के लिए दस×बारह का एक कमरा पर्याप्त है। महिला किसानों ने बताया कि मात्र दो माह में एक यूनिट से डेढ़ क्विंटल कच्चा मशरूम तैयार हो जाता है।किसानों ने बताया कि एक यूनिट मशरूम उत्पादन में दस किलो मशरूम का बीज, पाँच किलो सूखा चूना, पुआल का कुट्टी या भूसा, एक सौ पैकेट पॉली बैग और एक कीलो बायविस्टीन पाउडर लगता है।
इसमें कुल लागत पंद्रह हजार रुपए आता है। दो महीने की इस खेती में महिला किसानों को घर बैठे 25 हजार तक की आमदनी मिल जाती है। संगम आजीविका उत्पादक समूह, मानगढ़ के सदस्यों का कहना है कि उत्पादित मशरूम को बड़े मार्केट में उतारा जाएगा तथा इसे प्लास मार्ट के द्वारा ब्रांडिंग कर इन्हें मार्केटिंग किया जाएगा। बीपीएम मुकेश करमाली ने बताया कि मशरूम का उत्पादन कर महिलायें आत्मनिर्भर बन रही है जब जो पूरे प्रखंड के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। दूसरी ओर एफटीसी डिकेश कुमार ने बताया कि इस प्रकार की अन्य आजीविका गतिविधियाँ चौपारण प्रखंड के अलग-अलग उत्पादक समूह में संचालित की जाएगी। जिसकी शुरूआत दो चार उत्पादक समूहों के माध्यम से किया जा चुका है।