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झरिया में अदबी महफ़िल का आयोजन

मिसरा तरह “मेरे दामन को क़नाअत से भरा रहने दे” पर हुई काव्य-गोष्ठी

झरिया, धनबाद। इदारा अहले क़लम, झरिया एक ऐसी साहित्यिक संस्था है, जिसने झारखंड में उर्दू अदब को फ़रोग़ देने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसने एक लंबे समय से उर्दू साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई हुई है। इसके लिए मरहूम शायर वक़ार क़ादरी ने अपना अहम योगदान दिया था।डॉ० इक़बाल हुसैन, जो इस साहित्यिक संस्था के सचिव हैं, समय-समय पर अदबी महफ़िलों का आयोजन करते रहते हैं, जो बहुत ही सराहनीय क़दम है।

इसी श्रृंखला में, इदारा अहले क़लम,झरिया की दसवीं काव्य गोष्ठी का आयोजन झरिया में किया गया। इसके लिए पूर्व में ही मिसरा तरह “मेरे दामन को क़नाअत से भरा रहने दे” दिया गया था, जो लखनऊ के मशहूर शायर डॉ० मेराज साहिल के शायरी से लिया गया था।

इस अदबी महफिल में धनबाद जिला के प्रबुद्ध वर्ग के लेखक और कविगण ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कुल्टी से आए हुए मेहमान शायर इब्न ताज की अध्यक्षता में यह काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। शिक्षक एवं मशहूर शायर डॉ० हसन निज़ामी ने इस अदबी महफ़िल में उद्घोषक के काम को बखूबी अंजाम दिया। उन्होंने अपने शायरी सुनाते हुए कहा कि “पाँव फैलाओ न शाख़ों से उतर कर सूरज,/ पेड़ की छांव तले हमको खड़ा रहने दे।”

प्रबुद्ध वर्ग के लेखक और कविगण ने अपने-अपने शायरी सुनाए

भागा रेलवे स्टेशन के निवासी, रिटायर्ड टीचर और मशहूर शायर इम्तियाज़ बिन अज़ीज़ ने कहा कि “इस अंधेरे में फ़क़त आस उसी से है ‘अज़ीज़’, / मेरे सीने में जो रौशन है दिया रहने दे।”

उर्दू पत्रिका ‘शहपर’ के सम्पादक और शायर अहमद फ़रमान ने कहा कि “मत उसे कह तू किसी से यह नबी का है क़ौल,/ जो गुनाहों को छुपाता है छुपा रहने दे।” सिजुआ,

कतरास के रहने वाले शायर जमाल अनवर ने कहा कि “मुझको शमशीर के साए में अभी रहना है,/ ज़ख़्मे दिल और हरा, और हरा रहने दे।”

इसी क्रम में शायर रियाज़ अनवर ने अपनी शायरी से पूरी महफ़िल लूट ली। उन्होंने अपनी मुकम्मल ग़ज़ल को सुनाते हुए कहा– “यह मोहब्बत, यह करम, जाने अदा रहने दे, / देख ली, देख ली, अब चश्मे वफ़ा रहने दे।/ कोई तो ठौर ठिकाना हो, कोई मसकन हो,/ इस भरे शहर में अपना भी पता रहने दे।” इम्तियाज़ दानिश ने अपने अशआर को सुनाते हुए कहा– “दाग धब्बों से अगर पाक है दामन ‘दानिश’, / है लगा कपड़ों में, पैवन्द तो लगा रहने दे।”

आईपीएस करकेन्द के शिक्षक ग़ुलाम ग़ौस ‘आसवी’ ने गणतंत्र दिवस के माहौल में अपनी शायरी पेश करते हुए कहा – “हिन्द की शान है ये, इसको बचा रहने दे, / गंगा-जमुना की तमद्दुन (संस्कृति) की फ़िज़ा रहने दे।”

उर्दू त्रैमासिक पत्रिका ‘रंग’ के सम्पादक व सिजुआ के रहने वाले उस्ताद शायर शान भारती ने सुनाया– “मैंने अब खुद को बना डाला है पत्थर की तरह, / वो अगर मुझसे ख़फ़ा है, तो ख़फ़ा रहने दे।”

इस प्रकार, यह साहित्यिक संगोष्ठी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। इस अवसर  पर डॉ० यूनुस फिरदौसी, साजिद अनवर, शिक्षक मोoअनीस, मोo नज़ीर, शाहिद करीम, तौक़ीर आलम इत्यदि भी मौजूद थे।

Last updated: जनवरी 27th, 2019 by Pappu Ahmad