पढ़ेगा इंडिया और बेरोजगार होगा इंडिया
भारत बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहा है. यहाँ तक कि योजना आयोग का भी यही विचार है कि भविष्य में यह समस्या शिक्षित वर्ग में और भी बढ़ेगी। बेरोजगारी की समस्या बढ़ती हुई आबादी के साथ और भी बढ़ रही है। रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा विकास के लिए दो महत्वपूर्ण तथ्य हैं जो हमेशा से उपेक्षित रहे हैं। सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी)में वृद्धि तभी होती है जब रोज़गार दर में वृद्धि होती है।
विकास और रोज़गार के अतिरिक्त रोज़गार पैकेज का उद्देश्य प्रतिभा को बर्बाद होने से रोकना होना . नियोक्ताओं को बढ़ावा देने के लिए भर्ती अनुदान का उपाय करना चाहिए जिससे वे शिक्षित लोगों को नए रोज़गार उपलब्ध करा सकें। रोज़गार की वृद्धि के लिए घरेलू सकल उत्पाद में भी तीव्र विकास होना चाहिए जहाँ कामगारों की जरूरत निर्माण और सेवा दोनो में ही हो।
कम्पनियों को भी सामाजिक सुरक्षा और रोज़गार सुरक्षा के लिए कुछ उपाय करना चाहिए। यह उपाय सकल घरेलू उत्पाद का अच्छा उपाय देंगे क्योकि जमीनी कार्यकर्ता आर्थिक मंदी के समय सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। बेरोज़गारी की समस्या से बहुत सावधानी से निपटना चाहिए, क्योंकि देश का भविष्य युवाओं पर निर्भर है। वास्तविक समस्या रोज़गार निर्माण की है और यह अर्थव्यवस्था के साथ बहुत गहराई के साथ जुड़ा है और नवनिर्माण का बहुत महत्वपूर्ण भाग है। नए निवेश के लिए यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जी डी पी का विकास आर्थिक विकास के साथ एक सा नहीं है रोज़गार विकास की समस्या सरकार के लिए वास्तविक चुनौती है।
सरकार को सभी कल कारखानों पर घ्यान देना चाहिए और आश्वस्त करना चाहिए कि वे प्राथमिक और योजनाबद्ध रूप से महत्व पाएं और बड़े पैमाने पर कारखानों के लिए निवेश पा सकें जिससे तुरन्त नौकरी और मजदूरी में लाभ पा सकें और ग्राहक भी इन लाभों की व्याख्या कर सकें जिससे भविष्य में नौकरी और लाभ अधिक मजबूत हो सकें।
सरकार को तमाम आंदोलनों जैसे नव विकास, पिछली घोषित योजनाओं के अमली करण, आधारभूत संरचना को बढ़ाने के लिए फंडिंग करना और विनिवेश के लिए प्रचार करना, यही सब ग्राहकों के विश्वास के स्तर को बढ़ावा देता है। केंद्र सरकार को रोजगार निर्माण के लिए प्रभावशाली कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए वास्तविक सम्बद्धता दिखानी होगी,नहीं तो देश बेरोजगारी की भयंकर विभीषिका की ओर जाएगा जिसे संभालना फिर सरकार के लिए मुशकील हो जाएगा।
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