जनवादी लेखक संघ के तत्वावधान में कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की 140वीं जयन्ती का सादा समारोह स्थानीय राहुल अध्ययन केन्द्र परिसर में संपन्न हुआ। मौके पर प्रेमचंद की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया ।
मौके पर जलेस के प्रांतीय सह सचिव साहित्यकार धनंजय प्रसाद ने विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुये कहा कि लेखक आवाम की अनुभूतियों का आईना होता है और अपनी जगह से वह हमेशा सच का रास्ता दिखलाता और उन ताकतों को बेनकाब करता है , जो दुनिया को बेनूर और बदसूरत बनाने पर तुले हुए है । ऐसे ही लेखक.थे प्रेमचंद । जिन्होंने आवाम के पहलुओं का चित्रण मार्मिक ढ़ंग से किया है ।
प्रेमचंद का साहित्य और सामाजिक विमर्श आज भी उसी भारत की तस्वीर खींचती है ,जिसे प्रेमचंद ने स्वयं जीया था , उनके पात्र और परिवेश की त्रासदी को लमही से लेकर देश के हर गाँव में , होरी से लेकर वर्त्तमान भारत के प्रत्येक मजदूर ,किसानों की समस्याओं में महसूस किया जा सकता है । मानवीय संवेदना का आईना थे प्रेमचंद ।
प्रेमचंद विश्वस्तर के साहित्यकार थे । विश्व के तीन बड़े साहित्यकारों में प्रेमचंद. शुमार होते है । उनकी साहित्य में संवेदना , क्षमता एवं दृष्टि का अद्भूत समन्मय देखा जाता है ।निर्धनता से परिपूर्ण जीवन बिताकर भी उन्होंने हमेशा उदस्त जीवन मूल्यों के लिए संघर्ष किया । उनका विस्तृत साहित्य सृजन खूद व खूद उनकी ईमानदारी व सनत साहित्य साधना की कहानी कह देती है । अंत में उन्होंने मो० रफी साहेब को पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनकी गीत हम तुझे कभी भूला न पाऐगें ,गुनगुनाकर श्रद्धाजंलि दी । इसके आलावे अन्य लोगों ने आंन लाइन श्रदधासुमन अर्पित किये ।