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शादी ब्याह को लेकर मिट्टी के बर्तन को रंगने का काम शुरू, सरकार का सहयोग मिले तो इसे कुटीर उद्योग बनाया जा सकता है

धनबाद । धनबाद -बोकारो कोयलाञ्चल के लोगों के जीवन के प्रत्येक पक्ष में कुंभकारो की भूमिका अनिवार्य है। दैनिक घरेलू गतिविधियाँ हों, पूजा अनुष्ठान अथवा विवाह संस्कार। सभी प्रयोजनों में कुम्हारों द्वारा बनाई वस्तुओं के बिना संपन्न होना संभव नहीं।

पिछले लम्बे समय में यहाँ के कुम्हारों के काम और स्थिति में आये बदलाव को अनुभव किया है। पिछले चार दशकों में सबसे बड़ा अंतर यह आया है कि पहले बस्तर के कुम्हार केवल स्थानीय रहिवासियों के लिए उनकी आवश्यकता की वस्तुएं बनाते थे। वे अपने ग्राहकों और उनकी ससंकृति को अच्छी तरह समझते थे।

उनकी आवश्यकताओं से परिचित थे। पर अब उनके सामने दो ग्राहक समूह हैं। एक स्थानीय और दूसरा स्वदेशी शहरी लोगों के लिए। अतः कुछ कुम्हार केवल स्थानीय लोगों के लिए काम कर रहे हैं। कुछ कुम्हार केवल शहरी बाजार के लिए काम कर रहे हैं। कुछ कुम्हार ऐसे भी हैं जो मिला-जुला काम रहे हैं।

स्थानीय लोगों के लिए बनाया जाने वाला काम उपयोगी, अनुष्ठानिक और उसमें की जानेवाली सजावट अपेक्षकृत कम होती है। जबकि शहरी बाजार के लिये बनाया जाने वाला काम साफ़-सुथरा, चिकना पालिशदार और अलंकृत होता है।

शादी विवाह के शुभ अवसर पर मड़वा (विवाह मंडप) में प्रयोग होने वाले तथा देवी पूजन के लिए मिट्टी के बर्तन को रंगने का काम शुरू हो गया है।

बोकारो जिला के हद में फुसरो के पुराना बीडीओ ऑफिस की भाभी के रूप में प्रसिद्ध कौशल्या देवी खुद मिट्टी बर्तन रंगने में लगी हुई है। एनएफ.उनका कहना है कि सरकार का सहयोग मिले तो वह इसे कुटीर उद्योग बना सकती है।

Last updated: नवम्बर 18th, 2021 by Arun Kumar