रानीगंज । 26 जनवरी कोयला उद्योग के लिए काला दिवस था।यह विडंबना है कि 26 जनवरी के दिन पूरा देश जहाँ गणतंत्र दिवस के उल्लास में झूम उठता है वैसे घड़ी में रानीगंज कोयलाञ्चल क्षेत्र के लोगों में न्यू केंदा खान दुर्घटना आँखों के सामने आकर हिलोरी मारने लगती है। कोयला उद्योग के लिए मानो यह दिन काला दिवस था जब 56 मजदूर की मौत खान के अंदर ही अग्नि समाधि होकर हो गई।
आज न्यू केंदा कोलियरी मैं उन शहीद श्रमिकों के लिए बनी समाधि अस्थल भी जर्जर हो चुकी है। उनके नाम पर बनी पार्क भी खंडित हो चुका है। उन श्रमिकों के परिवार आज इस कोयला खान पर नहीं दिखते हैं। न्यू केंदा कोलियरी अपने समय का सुंदर और अधिक उत्पादन के लिए मशहूर था। आज यहाँ लगभग यहाँ बिरानी का माहौल है। मानों उन श्रमिकों का आत्मा ही इस क्षेत्र में बची है। यहाँ उत्पादन के लिए खान और खान श्रमिक भी नजर नहीं आते हैं । मात्र न्यू केंद्र कोलियरी का एक एजेंट ऑफिस सिमट कर रह गई है। पुरानी इतिहास को समझने और जानने वाले नए कामगार यहाँ हैं जिन्हें यहाँ की घटना की विस्तृत जानकारी तक नहीं है। खान के बाहर बनी सीएचपी प्रोजेक्ट अधर में ही रह गई। यहाँ के अवकाश प्राप्त श्रमिक बलवंत कहते हैं की अब यहाँ की स्थिति बदल चुकी है। खान के अंदर कोयला है कि नहीं है हम तो नहीं बता सकते हैं बाबू लेकिन अब कोई इस खान में घटनाक्रम के बाद जाना ही नहीं चाहते। न्यू केंद्र खान दुर्घटना के संदर्भ में कवि दुष्यंत की पंक्ति है कि
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह
जिंदगी ने जब छुआ तो फासला रख कर छुआ।
न्यू केंदा खान दुर्घटना की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह दुर्घटना उस समय हुई जब इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड की इस कोलियरी में सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा था। इस दुर्घटना के बाद इस इलाके में आने वाले हर व्यक्ति को ऊंची धाता है कि खान के प्रवेश पर सेफ्टी फॉर सेफ्टी लास्ट की घोषणा करने वाला पट्टा अब यह साफ हो गया है कि सुरक्षा सप्ताह मनाना और सुरक्षा करना दो अलग-अलग बातें हैं ।
ज्ञात हो कि 28 वर्ष पहले25 जनवरी 1994 का शाम था जब इस न्यू केंदा कोलियरी में विस्फोट के बाद आग लग गई थी। घटना की जानकारी मिलते मिलते रात हो चुका था 26 जनवरी की वजह से पहले तो यहाँ के माहौल को बिगड़ जाए इसके लिए भरपूर प्रयास की गई। लेकिन या दुर्घटना की खबर धीरे-धीरे 26जनवरी के सुबह तक जगजाहिर हो गया था। इस घटना मैं पूरे कोयला उद्योग में सनसनी फैला दी थी। आज भी उस घटनाक्रम को लेकर खान अधिकारी और खान शार्मिक उस घटनाक्रम से क्या सीख लेते हैं यह तो समय की बात है ।