प्राचीन समय में दुर्गमासुर नामक एक महा दैत्य हुआ, जिसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और चारों वेद हासिल कर लिए। जिसके कारण देवताओं की शक्ति क्षिण हो गई और 100 वर्षों तक जल नहीं बरसा। भीषण सूखा और चारों ओर हाहाकार मचा था।
तब ऋिषि मुनी और देवताओं ने आदिशक्ति माँ भगवति का आह्वान किया और माता ने उनकी करुण पुकार सुनकर शताक्षी रूप में प्रकट हुई। अपनी सौ नैनों से सात दिन और रात लगातार जल बरसाया, जिससे धरती पर चारों ओर जल के साधन उत्पन्न हुए और फिर माता ने शाकम्भरी रूप धारण कर धरती पर शाक उत्पन्न कर के सबके प्राण बचाए, सबकी क्षुधा मिटाई।
शाकम्भरी रूप में ही माता ने दैत्य दुर्गमासुर का वध कर वेदों को मुक्त कराया और धरती का उद्धार किया। दुर्गमासुर का वध करने पर माता का नाम दुर्गा देवी पड़ा। जिन्हें आज संसार जगत जननी शक्ति की देवी के रूप में पूजता है। शाकम्भरी परिवार आसनसोल विगत 6 वर्षों से माता शाकम्भरी के प्राकट्य महोत्सव जयन्ती उत्सव मना रही है।
संस्था के सदस्य सजंय सुलतानिया, शकंर क्याल, अशोक क्याल, सतीश क्याल ने बताया कि इस वर्ष 14 फरवरी को स्थानीय श्याम मन्दिर प्रागंण, राहा लेन, आसनसोल में शाकम्भरी जयन्ती उत्सव का महा आयोजन किया गया है। जिसमें भव्य श्रृंगार, ज्योत प्रज्जवलन, छप्पन भोग, अखण्ड ज्योत, मेंहदी, गजरा, सुप्रसिद्ध कलाकारों नवीन जोशी कोलकाता के द्वारा भजन अमृतवर्षा,महाप्रसाद आदि का आयोजन किया गया है।