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सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहा मधुपुर का तिलक कला मध्य विद्यालय

कई दिनों से पानी के अभाव में नहीं दिया जा रहा है बच्चों को मध्यान भोजन। प्राइवेट स्कूल पर राजनीति चमकाने वाले जनप्रतिनिधि क्यों है खामोश! जी हां मधुपुर का प्राचीनतम विद्यालय तिलक कला मध्य विद्यालय जो गाँधी स्कूल के नाम से भी जाना जाता है । जो कभी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने जीवन के सुनहरे पल बिताए। जिस विद्यालय को आज भी बापू का आदर्श माना जाता है । वहाँ की दुर्दशा देख शिवाय आँसू बहाने के कुछ भी नहीं कर सकते। विद्यालय में नए भवन तो बने हैं पर बापू की निशानी पुरानी भवन जर्जर हो कर गिरने के कगार पर है ।

बूंद बूंद पानी को तरसते नन्हे-मुन्ने छात्र-छात्रायेँ

अपनी राजनीति चमकाने एवं बापू को श्रद्धांजलि के नाम पर वर्ष में दो बार स्थानीय विधायक सह मंत्री राज पलिवार झंडातोलन करने जरूर आते हैं और उसी समय विद्यालय का हाल भी जानते हैं पर फिर किसे याद रहता है कि बच्चों को भोजन व पानी मिला भी या नहीं । जहाँ लगभग 300 से अधिक बच्चे बच्चियाँ का नामांकन विद्यालय में है बूंद बूंद पानी को तरसते नन्हे-मुन्ने छात्र-छात्राओं को खाना तो दूर पानी तक नसीब नहीं हो रहा है ।यह विडंबना है सरकार और सरकारी तंत्र का ।

निजी विद्यालय की जांच के लिए तुरंत पहुँचते हैं अधिकारी

प्राइवेट विद्यालय में कम अंक लाने वाले बच्चे को लेकर उपायुक्त तक राजनीति रोटी सेंकी  जाती है और अधिकारियों को विद्यालय पहुँचने का समय भी मिल जाता है । पर सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ना तो मंत्री है, ना अधिकारी ,ना राजनीति चमकाने वाले नेता! क्योंकि सरकारी विद्यालय में तो गरीब बच्चे पढ़ते हैं ।उनको भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है ।सरकार के लंबे लंबे दावे सबका साथ सबका विकास का यही हाल है ।विकास जहाँ आज के युग में पानी तक नसीब नहीं हो रहा। जब सरकारी साधनों पर चलने वाले यह विद्यालय का हाल यह है तो हम और किससे उम्मीद कर सकते हैं ।

पानी के अभाव में महीनों से बंद मध्यान भोजन वाले विद्यालय तिलक कला मध्य विद्यालय का हाल जानने के लिए आज तक ना तो डीएसई आए ना ही बीईईओ ,ना ही जनप्रतिनिधि ही पहुँचे हैं ।बच्चों को इस भीषण गर्मी में प्यास लगता है तो पागलों की तरह वह इधर-उधर भागते हैं। पर बेबस विद्यालय बच्चों को पानी पिलाने में असमर्थता जताता है ।

नगर परिषद भी गंदा पानी भेज देता है

कभी-कभी नगर परिषद ₹400 लेकर एक टैंकर पानी जो कि गंदा पानी नदी तालाब से भरकर उपलब्ध भी करा देता है । अब जरा समझिए बच्चों को प्यास बुझाने के लिए नगर परिषद के 400 रुपए टैंकर वाले गंदा पानी पर भी निगाहें लगी रहती है कि कब पानी आएगा कब भोजन मिलेगा कब पानी मिलेगी यह उन बच्चों को यह भी पता नहीं कि ऐसे पानी सिर्फ और सिर्फ बीमारी को आमंत्रित कर रहे हैं पर क्या करें बच्चे अगर कुछ कहेंगे तो महीना में मिलने वाला यह पानी भी नसीब नहीं होगा ।

जब शहर के बीचोबीच सरकारी विद्यालय का यह हाल है तो ग्रामीण विद्यालयों का क्या हाल होगा

हम 21वीं सदी की बात कर रहे हैं। स्वास्थ्य शिक्षा पर सरकार की बड़ी राशि खर्च हो रही है। बड़े-बड़े नारों और वादे किए जा रहे हैं ।क्या इन बच्चों का भविष्य अंधकार में नहीं डूबता जा रहा है । जब शहर के बीचोबीच सरकारी विद्यालय का यह हाल है तो सोचिए गाँव ग्रामीण में पढ़ने वाले बच्चे किन मुसीबतों का सामना कर रहे होंगे। क्या राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को यही श्रद्धांजलि मिल रही है ।ऐसे भ्रष्ट सरकारी तंत्र को देख आज उनकी आत्मा भी कांप जाती होगी ।समय रहते मंत्री ,विधायक, सांसद ,जनप्रतिनिधि ,सरकारी अधिकारी ने सही से ध्यान नहीं दिया तो इस भीषण गर्मी में कई बच्चों के जान को बचाना भी मुश्किल है ।इसके लिए जवाबदेह कौन होगा ?

Last updated: मार्च 25th, 2019 by Ram Jha