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रोजे का धार्मिक के साथ ही सामाजिक और आर्थिक महत्त्व

रमजान का दूसरा जुम्मा

आसनसोल -शुक्रवार को रमजान का दूसरा जुम्मा मुकम्मल हुआ. इस दौरान हर मस्जिदों में काफी भीड़ दिखी. कई जगह नमाजियों के लिए मस्जिदों के बाहर तक इन्तेजाम किये गए थे. चूंकि रमजान इबादतों का महीना है और इस महीने में खुदा अपने बन्दों के हर नेकियो में शवाब को कई गुना बढ़ा देता है. इसलिए हर कोई अधिक से अधिक इबादत करते है. रमजान के महीने में कारोबार और परिवार से अधिक समय इबादत में दिया जाता है. इस्लाम के पाँच फर्जों में से रोजा एक है. इस दौरान रोजे (उपवास) के साथ ही तरावीह की नमाज भी काफी अहम् होती है. तरावीह की नमाज रात साढ़े आठ बजे के करीब शुरू हो जाती है. रमजान-उल के चांद की खबर मिलते ही तरावीह की नमाज की होती है.

रमजान का हर पहलू निराला

रोजे का धार्मिक के साथ ही सामाजिक और आर्थिक महत्त्व भी जुड़े हुए है. वैज्ञानिक के अनुसार यह मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक है. चिकित्सक भी कहते है कि संयमित उपवास से पाचनतंत्र मजबूत होता है. जबकि धर्म के अनुसार रमजान के पूरे महीने में हर चीज (तन,मन,धन, नजर, जुबान) का उपवास रखकर इंसान खुदा का आज्ञाकारी बंदा बनने का प्रयास कर सकता है. रमजान का हर पहलू निराला है. इस महीने का कोई भी नेक काम जाया नहीं होता. रमजान के पूरे महीने में उपवास रखने का सामाजिक पक्ष यह है कि जब हम खुद भूखे-प्यासे रहेगें तो हमें दुसरो के भूख का एहसास होगा. हम जब भूख और प्यास की शिद्दत को खुद में महसूस करेंगे तो हमारे अंदर गरीब-बेसहारों की मदद का जज्बा उत्पन्न होगा. रमजान समाजवाद की भी जबर्दस्त हिमायत करता है, रमजान के महीने में जकात (दान) के लिए खासतौर पर आदेश दिया गया है. अपनी सालभर की कमाई का एक छोटा-सा हिस्सा गरीबों-यतीमों के बीच जब हम दान करते हैं तो समाज में आर्थिक समानता आती है, गरीबों के उत्थान में जकात की राशि का बड़ा योगदान होता है, आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी समाज में सुख से जीने लायक स्थिति में आ जाते हैं.

बुराइयों से बाज आने की ताकीद

हजरत मुहम्मद साहब ने फरमाया कि जकात अदा करने वालों की बलाएं और मुसीबतें टाल दी जाती हैं. उन्होंने ने इस महीने के आने से पहले ही लोगों को इसकी बरकतों से वाकिफ कराते थे, लोगों को खुदा की इबादत की तरफ मोड़ते और बुराइयों से बाज आने की ताकीद करते. रमजान के महीने को तीन अवधियों में बाँटा गया है. पहली दस दिनों की अवधि रहमत की कहलाती है, यानी शुरू के दस दिनों में बंदों पर खुदा की रहमत बरसती है. दस दिनों का दूसरा मगफिरत का होता है. इसमें नेक बंदा अपने गुनाहों की जो भी माफी मांगता है, उसे खुदा कबूल फरमाते हैं और तीसरा यज कि निजात यानी जहन्नम से छुटकारे का होता है. इस तरह देखा जाए तो रमजान का पूरा महीना खुदा की रहमतों से मालामाल होने का महीना है. इसलिए इस महीने के पल-पल को नमाज और कुरान पढ़ने में गुजारनी चाहिए.

Last updated: मई 25th, 2018 by News Desk

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