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500 सौ करोड़ की हाउसिंग योजना से बाराबनी में बहार जबकि 123 करोड़ का नामोकेसिया प्रोजेक्ट अधर में

शहरों की भीड़ में उगने वाली राजनीति की फसल से  विकासशील इमारतों का ही कायाकल्प होता रहा है। भीड़ भरी जिंदगी से दूर गाँव की दहलीज़ पर  कोई गरीब अक्सर उम्मीद का दीपक जलाए अपने हिस्से की एक किरण पाने को बेबस होता है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि असली भारत तो गाँव में बसता है, इस कहावत से परे आज भी हर योजना गाँव पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देती है। और जो मिल जाता है उसका सत्कार ग्रामीण आत्मा की गहराइयों से करते नज़र आते हैं तो कहीं कुछ लोग विकास को ठोकर मार सदैव मुफलिसी की आगोश में समा जाते है। कुछ ऐसा ही नजारा बाराबनी और सालानपुर ब्लॉक दहलीज पर विकास की दो अलग अलग परिभाषा बयान करती है।

रानीगंज धँसान प्रभावित के लिए बनाया जा रहा है पुनर्वास मेगा प्रोजेक्ट

आसनसोल शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर बाराबनी ब्लॉक के डॉसक्यारी गाँव है। इस गाँव की दहलीज़ पर पश्चिम बंगाल हाउसिंग बोर्ड द्वारा कोल इंडिया पुनर्वास योजना के सहयोग से लगभग 500 करोड़ की लागत से रानीगंज धँसान प्रभावित के लिए बनाए जा रहे पुनर्वास मेगा प्रोजेक्ट की तस्वीर ने गाँव की तस्वीर बदल दी है। करीबी बाजार गौरंगडीह से लगभग 2 मील की दूरी तय करने पर डॉसक्यारी गाँव की गोद में निर्माणाधीन गगनचुंबी इमारत आपको महलों के शहर कोलकाता की अनुभूति कराती है।

इस प्रोजेक्ट निर्माण से आज गाँव के हर चेहरे पर मुस्कान है। इतना ही नहीं 13 एकड़ एवं 26 एकड़ भूमि पर बन रहे दो प्रोजेक्ट के विशालकाय इमारत में आस-पास के लगभग एक हजार से भी अधिक लोग निर्माण कार्य से जुड़कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं ।

इस प्रोजेक्ट में सभी आधुनिक रिहायशी सुविधाएं

2018 से बन रहे इस प्रोजेक्ट निर्माण के लिए युद्धस्तर पर निर्माण कार्य किया जा रहा है, जिसे 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मोंटीकार्लो एवं सिम्पलेक्स नामक देश की दो बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी को निर्माण कार्य का जिम्मा दिया गया है। मोंटीकार्लो कंपनी के मुख्य सुरक्षा अधिकारी फिरोज खान ने बताया कि दोनों प्रोजेक्ट में कुल 3 हजार 3 सौ से भी अधिक परिवारों को सरकार द्वारा पुनर्वास कराने की योजना है। जिसके लिए सभी को 1 बीएचके का घर दिया जाएगा।

प्रोजेक्ट में सिम्प्लेक्स द्वारा 1104 जबकि मोंटीकार्लो द्वारा 2224 भवन का निर्माण किया जा रहा है, उन्होंने कहा कि 3 हजार 3 सौ परिवार समेत ग्रामीणों के लिए अत्याधुनिक अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, प्ले ग्राउंड, स्विमिंग पूल, जिम, मार्केट आदि का भी निर्माण किया जाना है।

स्थानीय ग्रामीण प्रशांतो मंडल ने बताया इस प्रोजेक्ट निर्माण से गाँव में अभी से खुशहाली आ चुकी है। सरकार की पहल से यहाँ भव्य प्रोजेक्ट का निर्माण किया जा रहा है। जिसमें अभी से ही स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। आने वाली समय में इस योजना से पूरा क्षेत्र का कायाकल्प हो जाएगा।

प्रोजेक्ट निर्माण से क्षेत्र का होगा स्वर्णिम विकास-असीत सिंह

बाराबनी तृणमूल ब्लॉक अध्यक्ष सह जिला परिषद सदस्य असीत सिंह बताते है कि इस प्रोजेक्ट से गाँव समेत पूरे क्षेत्र का स्वर्णिम विकास होगा । उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा बाराबनी विधायक विधान उपाध्याय को इस योजना को धरातल पर फलीभूत करने का श्रेय देते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट के बन जाने से स्थानीय लोगों को काफी रोजगार प्राप्त होगा। क्षेत्र के युवा को बेहतर शिक्षा पाने के लिए बाहर नहीं जाना होगा। उन्नत चिकित्सा और आपातकालीन इलाज के लिए आसनसोल की दूरी भी अब तय नहीं करनी होगी । लोग विभिन्न प्रकार के कार्य से जुड़कर रोजगार प्राप्त कर सकेंगे । इस मेगा प्रोजेक्ट में गाँव के हरेक व्यक्ति की सराहनीय भूमिका रही है। अब गाँव के लोग शिक्षित हैं और आने वाली पीढ़ी को और भी सशक्त बनाने का सपना पूरा करना चाहते हैं ।

उन्होंने कहा कि पूर्व में यहाँ भी प्रोजेक्ट निर्माण को लेकर कुछ समस्या उत्पन्न हुआ था, किन्तु ग्रामीणों को समझाने के बाद अब उनके ही सहयोग से निर्माण कार्य रफ्तार पकड़ चुकी है।

सालानपुर नमोकेशिया हाउसिंग प्रोजेक्ट को लगा ग्रहण

सालानपुर ब्लॉक अन्तर्गत नमोकेशिया गाँव में पश्चिम बंगाल हाउसिंग बोर्ड द्वारा 123 करोड़ 25 लाख की लागत से 119 बिल्डिंग में बनाई जाने वाली 1904 भवन समेत मल्टीप्लेक्स, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, मार्केट आदि निर्माण कार्य अब फाईलों में धूल फांक रही है।

कोल इंडिया रानीगंज कोयला खदान क्षेत्र के लिए पुनर्वास प्रोजेक्ट को यहाँ ग्रहण लग चुका है। निर्माण कार्य के लिए वर्ष 2018 में पहुँची ब्रिज एन्ड रूफ निर्माण कंपनी को ग्रामीणों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा था।

भवन निर्माण स्थल विरोध में रणक्षेत्र बन चुका था। ग्रामीणों द्वारा खूनी संघर्ष में कंपनी के आधा दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। अंत में कंपनी को यहाँ से बाध्य होकर लौटना पड़ा।

तत्कालीन पश्चिम बर्द्धमान जिला शासक शशांक कुमार सेट्ठी समेत सम्पूर्ण प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों को समझाने और मनाने का हर प्रयास विफल रहा निर्माण किया जाने वाला जमीन सरकारी होने के बावजूद भी गाँव के आदिवासी समुदाय किसी भी हाल में निर्माण कार्य के लिए जमीन देने को तैयार नहीं है।

Last updated: अगस्त 31st, 2019 by Guljar Khan