रामनवमी के अवसर पर शोभा यात्रा के संपन्न होते ही प्रशासन से लेकर लोगों ने राहत की सांस ली । जबकि इस शोभायात्रा में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष भी लोगों का उत्साह कम नहीं था । अंतर सिर्फ इतना था कि पूरी रामनवमी शोभायात्रा को उत्सव में तब्दील कर दी गई थी । केसरिया रंग से पटा पूरा नगर केसरिया रंग गुलाल की होली, गाजे बाजे की धुन से पूरे नगर को उत्सव में तब्दील कर दिया था । एक तरफ जहाँ जय श्रीराम के नारे तो दूसरी तरफ भारत माता की जय । कहीं केसरिया झंडा तो कहीं तिरंगा लहरा रही थी । कुल मिलाकर सौहार्द पूर्ण वातावरण के बीच हिंदू-मुस्लिम सभी एक दूसरे के अभिवादन में भी देखे गए ।
पिछले वर्ष देखते ही देखते शोभा यात्रा रणभूमि में बदल गई थी
सच यही परिवेश रहा है रानीगंज शहर का लेकिन ना जाने किसकी नजर इस शहर को लग गई थी कि देखते ही देखते शोभा यात्रा रणभूमि में बदल गई थी । तोड़-फोड़ , आगजनी ,पथराव या यूं कहें जो कल तक आपस में दोस्त थे वह दुश्मन बन गए थे । पूरा का पूरा शहर जल उठा था । एक तरफ शराफ व खेतान परिवार की तो दूसरी तरफ मो० सोहेल व समीम के परिवार की ओर से चीख और चिल्लाहट की आवाजें गूंज रही थी । आज भी वह तस्वीर आँखों के सामने तैर रही है क्योंकि दिन भर के शोभा यात्रा के पश्चात शाम के वक्त भी पूरा शहर सन्नाटा में तब्दील था । घटना के भुक्तभोगी नरेश, सुरेश , विनोद व मोहम्मद सोहेल जैसे लोगों का कहना है कि घटनाक्रम के बाद खूब हुआ नाटक , अनेकों लोग आए आश्वासन देने, महरम लगाने , कमीशन बैठी , नेता आए , लेकिन हुआ क्या ? दाग तो रह ही गया । घाव भर गया, जख्म रह गया ।
दंगे की आग की चिंगारी किसी एक के घर को नहीं जलाती
एक पुरानी कहावत है कि दंगे की आग की चिंगारी किसी एक के घर को नहीं जलाती क्योंकि उसका धर्म ही है जलना वह किसी को नहीं बख्सती । मैंने अपने पत्रकारिता जीवन में कभी भी सांप्रदायिक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था लेकिन दुःख है कि मुझे भी उक्त शब्द का इस्तेमाल करना पड़ा । घटनाक्रम को लेकर जो भी आकलन की जाए लेकिन वास्तविकता यह है कि उस वक्त पुलिस प्रशासन की वजह से ही यह घटना घटी थी और इस वर्ष अगर यह सुंदर माहौल देखने को मिले तो इसके पीछे भी वर्तमान पुलिस प्रशासन की ही भूमिका रही।