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राज्य सभा में पास नहीं हो सका तीन तलाक बिल

फ़ाइल फोटो

अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को अवैध क़रार दे दिया था। इसके बाद सरकार मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक लेकर आई थी । मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018 लोक सभा में पारित हो गया था । जिसके बाद सरकार अब इसे राज्य सभा से पास कराकर क़ानून की शक्ल देना चाहती थीं। लोक सभा में जब इस बिल पर वोटिंग हुई थी तो कॉंग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने सदन से वॉकआउट कर दिया था। विपक्ष ने सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने कीकी मांग की थी । बिल के राज्य सभा में पहुँचने के बाद भी विपक्ष ने सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने की मांग जारी रखी।

नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने कहा -इस बिल से करोड़ों लोगों की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा।

राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि हम इस बिल का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन बिल से करोड़ों लोगों की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा, इसलिए इसे पहले सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाना चाहिए। गुलाम नबी आज़ाद ने बीजेपी सरकार पर संसद की परंपरा तोड़ने का लगाया। उन्होंने कहा, “सालों से हर बिल को पहले स्टैंडिंग कमिटी और फिर सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाता है। उसके बाद बहुमत के आधार पर बिल संसद से पारित होता है। लेकिन बीजेपी सरकार अहम बिलों को सीधे-सीधे पास करा रही है। पश्चिम बंगाल से तृणमूल कॉंग्रेस के सांसद डेरेक ओब्राईन ने 15 विपक्षी दलों की ओर से बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने का प्रस्ताव रखा हंगामा बढ़ता देख उपसभापति ने राज्य सभा की कार्यवाही दो जनवरी 2019 सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी

कॉंग्रेस तीन तलाक़ बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने पर अड़ी

उनका कहना है कि मुस्लिम समुदाय इस बिल से ख़ुश नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक़ को अवैध क़रार दे दिया था। लेकिन फिर सरकार ने बिल लाकर तीन तलाक़ को आपराधिक बना दिया और तीन साल की सज़ा का प्रावधान कर दिया “किसी भी पार्टी को इस बिल के भविष्य की चिंता नहीं है। बीजेपी दिखाना चाहती है कि हमने कोशिश की। बीजेपी तीन तलाक़ बिल के ज़रिए अपनी आज़माई हुई ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।

कॉंग्रेस इसे सेलेक्ट कमिटी के पास भेजना चाहती है

सेलेक्ट कमिटी संसद के अंदर अलग-अलग मंत्रालयों की स्थायी समिति होती है, जिसे स्टैंडिंग कमिटी कहते हैं. इससे अलग जब कुछ मुद्दों पर अलग से कमिटी बनाने की ज़रूरत होती है तो उसे सेलेक्ट कमिटी कहते हैं. इस कमिटी में हर पार्टी के लोग शामिल होते हैं और कोई मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है इसका गठन स्पीकर या सदन के चेयरपर्सन करते हैं

Last updated: दिसम्बर 31st, 2018 by News Desk Monday Morning