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कुर्बानी हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है – हाफिज हदीस

चौपारण प्रखंड के प्रत्येक गांव में ईद-उल-अजहा की तैयारी शुरू हो चुकी है। लोग ईद का समान एवं बकरा लेने में जुट गए हैं। इस्लाम धर्म का पवित्र त्योहार बकरीद यानी ईद-उल-अजहा 10 जुलाई को है। कमलवार मदरसा दारूल कुरान के हाफिज हदीस ने कहा की कुर्बानी एक बहुत ही खास अमल है। अल्लाह के नजदीक बहुत पसंदीदा अमल है। कुर्बानी हर मालिके निसाब पर वाजिब है। कुर्बानी खालिस अल्लाह के लिए है। कुर्बानी के जानवर का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह कबूल करता है अल्लाह के पास न जानवर, न गोस्त, न खुन पहूंचता है, बल्कि हमारा तकवा अल्लाह के पास पहुंचता है। जानवर के बदन पर जितने बाल होते हैं अल्लाह ताला उतनी नेकिया अता करता है। कुर्बानी का जानवर बहुत अच्छा होना चाहिए यानी उसमे कोई येब नही होना चाहिए। कुर्बानी के जानवर को वक्त से पहले खिला पिला कर मजबूत करना चाहिए और अपने नजदीक करना चाहिए, कुर्बानी करने वाले सभी लोगों को बहुत ध्यान रखने की जरूरत है, अल्लाह हमलोगों को इस अमल को कुबूल फरमाए आमीन।

क्यों मनाई जाती है बकरीद===

ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हुए थे। अल्लाह का हुकुम मानते हुए हजरत इब्राहिम जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर वार करने गए, अल्लाह ने उसे बचाकर एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। तभी से इस्लाम धर्म में बकरीद मनाने का प्रचलन शुरू हो गया।

Last updated: जुलाई 7th, 2022 by Aksar Ansari