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साहिबगंज महाविद्यालय के भू-गर्भ शास्त्र के व्याख्याता प्रोफेसर रंजीत कुमार ने माँ गंगा की दशा देख चिंता जाहिर की

साहिबगंज महाविद्यालय के भू-गर्भ शास्त्र के व्याख्याता, पुरातत्व वैज्ञानिक, और सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर, प्रोफेसर रंजीत कुमार आज की माँ गंगा की दशा देखकर चिंतित, और व्यथित हैं। एक भेंट वार्ता में उन्होंने माँ गंगा की दशा और दिशा के बारे में बताते हुए कहा कि गंगा को अपने पूर्व स्थिति में लाने के लिए स्थानीय प्रशासन के साथ ही राज्य एवं केन्द्र सरकार को कुछ कदम तत्काल ही उठाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि गंगा के मुहाने पर जमे गाद का निपटारा सबसे पहले करना होगा। फिर शहर के विभिन्न मोहल्लों,एवं महलों से नाली के माध्यम से जो गंदगी निकलती है, जिसमें ठोस, तरल पदार्थों के अलावे प्लास्टिक, पॉलीथिन होती हैं,उससे गंगा प्रदूषित हो रही है। गंगा को तत्काल प्रभाव से सभी नाले के अंतिम छोर पर गड्डा कर कम से कम तत्काल अवशिष्टों का रोका जाना जरूरी है।

डॉ.रंजीत ने वेस्ट को वेल्थ बनाने पर जोर दिया,साथ ही री यूज, री साइक्लिंग,एवं रीड्यूज करने की बात कही । उन्होंने कहा कि गंगा केवल भारतीय सांस्कृतिक सभ्यताओं के दर्शन नहीं हैं, अपितु ग्रामीणों के जीविकोपार्जन का बड़ा साधन भी हैं। साथ ही जैव विविधता, पारस्थितिकी तंत्र को संतुलितकर आहार देता है। जलीय जीवों का पोषक है,और सबसे बड़ी बात की गंगा जल से कई बीमारियाँ नष्ट होती हैं,व भू गर्भिय जल का भंडारण भी होता है।

डॉक्टर रंजीत ने जानकारी देते हुए आगे बताया कि गंदगी के कारण ऑक्सीजन का मानक कम होता जा रहा है, जिससे जलीय जीवों पर खतरे का बादल मंडरा रहा है। गंगा जल को शुद्ध करने में सबसे अधिक मदद करता है बैंक्टरिया। जिसका नाम है बैंक्टिरिफ़ास, जो गंगा जल के गंदगी को खा कर स्वयं खत्म हो जाता है। आज के परिदृश्य को देखते हुए वो कहते हैं कि गंगा जल अब आचमन, धार्मिक अनुष्ठान, व स्नान लायक नहीं रह गया है। गंगा में डिजॉल्व ऑक्सीजन की मानक मात्रा 0.4 मिलीग्राम है, पर एक शोध में उन्होंने पाया कि अब ये मात्रा 7 .5 से 8.5 मिलीग्राम है जो कि बहुत ही खतरनाक है। गंगा जल में 500 से 5000 जीवाणुओं की संख्या होनी चाहिए पर यह बढ़ कर 17 से 20 हजार हो गया है।

उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि ब्रिटेन का पिता कहलाने वाले टेम्स नदी जब फिर से नदी में बदल सकता है तो भारत की माँ गंगा क्यों नहीं ?

बाता की डेड रिवर के नाम से मशहूर टेम्स नदी, आम नागरिकों के भागेदारी, जिम्मेदारी, व सरकार की इच्छा शक्ति के कारण पुनः नदी के पूर्व रूप में आ गई है।

उन्होंने पौराणिक कथाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह से राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या कर मोक्ष दायिनी माँ गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटाओं के माध्यम से पृथ्वी पर मानव कल्याण, और अपने पुरखों की मुक्ति के लिए किया था,उसी तरह आज एक बार फिर हमें कठोर तपस्या करने की जरूरत है,ताकि आने वाली पीढ़ियों को हम स्वच्छ जल का उपहार दे सकें।

Last updated: नवम्बर 19th, 2020 by Sanjay Kumar Dheeraj