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जलते हुये शहर को सभी ने देखा पर एक माँ की आँसू को कोई न देख पाया

आसनसोल के सांप्रदायिक जंग धूमिल हो रही बेबश पिता की लड़ाई

एक ओर जहाँ शिल्पांचल की पावन धरती रानीगंज और आसनसोल में फैले साम्प्रदायिकता ने कहर बरपाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है तो दूसरी ओर इस जंग में एक माँ को अब अपनी 6 माह की पुत्री को न्याय दिलाने की आस भी धूमिल होती नज़र आ रही है, किन्तु ममता से विचलित माता-पिता गोलियों की ताड़तडाहट और बम की आवाज़ के बीच विगत एक सप्ताह से आसनसोल स्थित एचएलजी अस्पताल की चौखट पर धरना देकर अपनी दूधमुँहे के लिए गुहार लगा रहे हैं|

सीबीआई जाँच की मांग कर रहे हैं माता-पिता

एचएलजी अस्पताल के गेट पर धरना देते बच्ची के माता पिता

घटना विगत 20 मार्च की है जब आसनसोल कुमारपुर निवासी अक्षय कुमार घोष अपनी 6 माह पुत्री ख़ुशी घोष की तबियत ख़राब हो जाने के बाद उसे एचएलजी अस्पताल में भर्ती कराया था, जहाँ इलाज के दौरान ख़ुशी की मौत हो जाती है| जिसके बाद माता-पिता द्वारा अस्पताल प्रबंधन पर चिकित्सा में लापरवाही, गलत इलाज, की आरोप लगाते हुए इलाज की फ़ाइल का मांग किया गया, किन्तु प्रबंधन द्वारा असमर्थता दिखाने के बाद परिवार ने अस्पताल के मुख्य द्वारा के समीप धरना दे दिया जो आज तक जारी है। मृत ख़ुशी घोस के पिता अक्षय कुमार घोष ने बताया कि गलत उपचार के कारण उनकी पुत्री की मौत हुई है और अब वे लोग इस मामले में सीबीआई जाँच कर दोषी डाक्टरों पर कार्यवाही कि मांग कर रहे है|

जलते हुये शहर को सभी ने देखा पर एक माँ की आँसू को कोई न देख पाया

अक्षय घोष बताते हैं कि इस धरना प्रदर्शन में आसनसोल के लोगों ने उनका पूरा सहयोग किया। इसी बीच 27 मार्च को आसनसोल सांप्रदायिक आग में जल उठा और यहाँ से महज कुछ कदम की दूरी पर मानव ने मानवता को शर्मशार कर दिया| इस दौरान कई लोगों ने उन्हें यहाँ से चले जाने की सलाह दी, किन्तु पुत्री को इंसाफ दिलाने के लिए अड़े माता पिता अकेले निर्जीव प्राणी की भांति डटे रहे| माँ रूपा घोष अपनी अश्रु धारा को पोछते हुए कहती है कि दंगा से शहर जल रहा है यह तो सबने देखा किन्तु एक माँ का दिल ममता वियोग से जल रहा किसी ने नहीं देखा। आगे उन्होंने कहा कि मेने अपनी मासूम बेटी को खोया किन्तु और किसी माँ की गोद सुनी ना हो इसके लिए या तो अस्पताल सुधरेगा या ताला बंद होने तक लड़ाई जारी रहेगी। दंगा पीड़ितों से मिलने दर्जनों जनप्रतिनिधि पहुँचे किन्तु किसी ने भी एक बेबश माँ और मजबूर पिता की सुध नहीं ली अलबत्ता अब बाध्य होकर माता पिता ने आमरण अनशन करने की बात कही है|

मुआवजा नहीं इंसाफ चाहिए

मामले को लेकर पीड़ित परिवार द्वारा पश्चिम बर्दवान जिला शासक, आसनसोल दुर्गापुर पुलिस आयुक्त, मुख्य चिकित्सा अधिकारी जिला अस्पताल, आसनसोल नार्थ थाना समेत मानवाधिकार संगठनों से लिखित में परिजनों ने इंसाफ की गुहार लगायी है किन्तु कहीं से भी सकारात्मक पहल नहीं होने से इंसाफ धूमिल होती नज़र आ रही है| इंसाफ की इस लडाई में परिवार की आर्थिक स्थिति दिनों दिन ख़राब होती जा रही है। विगत एक सप्ताह से आन्दोलन कर रहे एल०आई०सी० कार्यालय में क्लर्क पद पर कार्यरत अक्षय परिवार का इकलौता कमाने वाला है। ऐसे में एक 9 वर्षीय पुत्र इन्द्रजीत कुमार घोष की पढ़ाई, समेत परिवार की स्थिति दयनीय हो गयी है| फिर भी पिता अक्षय मुआवजा नहीं इंसाफ चाहते है| शुक्रवार को अक्षय अकेले ही धरना स्थल पर बैठे रहें।

अस्पताल लापरवाही से कर रहे हैं इंकार

मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क के संवाददाता ने एचएलजी अस्पताल के प्रबंधन एवं चिकित्सकों से बात की जिसमें उन्होंने किसी भी लापरवाही से इंकार किया है। उनका कहना है कि मरीज कि स्थिति पहले से ही खराब थी। उसे ईएसआई अस्पताल से यहाँ रेफर किया गया था एवं उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और तेज बुखार भी था । सभी दवाइयाँ नियमानुसार ही दी गयी है उसके बाद जब बच्ची कि हालत गंभीर होने लगी तो उसे आईसीसीयू में दिया गया फिर भी बच्ची रिकवर नहीं कर पायी । चिकित्सकों ने बच्ची को न्यूमोनिया से संक्रमित और ठीक से सांस नहीं ले पाना ही मृत्यु का कारण बताया। इसके अलावे चिकित्सकों ने बताया कि बच्ची का पहले से ही लीवर का ऑपरेशन हुआ था। लीवर ऑपरेशन एक जटिल प्रक्रिया है । दो माह की बच्ची का तो और भी जटिल है । हो सकता है कि उस ऑपरेशन से बच्ची पूरी तरह से रिकवर नहीं कर पायी थी ।

परिवार चिकित्सक पर ही आरोप लगा रहे हैं

धरने को मिल रहा है जन समर्थन, हर रोज जुटती है भीड़ एवं शाम को जलाए जाते हैं कैन्डल

हमारे संवाददाता से बात करते हुये पिता अक्षय घोष ने बताया कि बच्ची के लीवर का ऑपरेशन बहुत पहले हुआ था और बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ थी उसके शरीर में लीवर से जुड़ी कोई समस्या नहीं थी । उसे तो बुखार के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया था। तीन बजे अस्पताल में भर्ती किया गया एवं 7 बजे तक बच्ची जेनेरल वार्ड में पड़ी थी एवं इसकी कोई भी चिकित्सा नहीं कि गयी । 7 बजे डॉक्टर अमित मण्डल ने न जाने कौन सा इंजेक्शन दिया उसके बाद से बच्ची के पूरे शरीर में दाने-दाने फूलने लगे और बच्ची की पाँच मिनट में ही मौत हो गयी । मौत के बाद उसे झूठ-मूठ में ही आईसीसीयू में भर्ती किया गया।

कुछ विसंगतियाँ भी सामने आ रही है

बार-बार मांगे जाने पर भी अस्पताल चिकित्सा रिपोर्ट परिजन को नहीं दे रहे हैं । हमारे संवाददाता को भी रिपोर्ट दिखाने से इंकार कर दिया। दूसरी ओर बच्ची की मृत्यु के समय को लेकर भी विसंगतियाँ हैं क्योंकि बच्ची के पिता ने बताया वे 10 बजकर 10 मिनट पर बच्ची के शव को अस्पताल से लेकर चले गए थे पर मृत्यु प्रमाणपत्र दिया गया जिसमें बच्ची की मृत्यु 10 बजकर 6 मिनट लिखी हुयी है। यह बात काफी विरोधाभाषी है क्योंकि मृत्यु के मात्र चार मिनट के भीतर ही कैसे चिकित्सकों ने बच्ची को मृत मन लिया और शव परिजनों को सौंप दिया । न विरोधाभासों से ऐसा महसूस होता है कि बच्ची कि मृत्यु काफी पहले हो गयी थी एवं अस्पताल इसमें जरूर कुछ लीपापोती करने का प्रयास कर रहा है

मामले की जाँच होनी चाहिए

आईसीयू को लेकर कई अस्पतालों से कई बार शिकायत आती है कि मृत्यु बाद मरीज को आईसीयू में डाला गया। इस विषय पर अस्पताल प्रबंधन से पूछा गया कि क्या आईसीयू कमरे में सीसीटीवी कैमेरा नहीं होता है तो उन्होंने कहा नहीं। जब आईसीयू को लेकर इस तरह के विवाद अक्सर आते हैं तो जिला प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी अस्पतालों के आईसीसीयू वार्ड में सीसीटीवी कैमेरा लगा होना चाहिए या फिर ऐसी कोई व्यवस्था करनी चाहिए कि जिसे जरूरत पड़ने पर जाँच कर पता लगाया जा सके कि जब मरीज को आईसीयू वार्ड डाला गया था तब वो जीवित ही थे । इसके अलावा यदि जेनेरल वार्ड में भी सीसीटीवी रहे तो यह देखा जा सकेगा कि कितने बजे चिकित्सक आए कब इलाज किया और कब नहीं। धरने पर बैठे कई और लोगों ने भी अस्पताल की लापरवाही कि घटनाएँ सुनाई। लोगों में अस्पताल के खिलाफ काफी गुस्सा है। बच्ची के माता-पिता का यह धरना बिल्कुल गलत नहीं है और जिला प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए

Last updated: मार्च 31st, 2018 by Guljar Khan