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प्रतिदिन 60-100 रुपए का पानी खरीदने को मजबूर हैं यहाँ के निवासी

मधुपुर: कहते हैं जल है तो कल है? यह वाक्य शहर के ड्राईजोन मुहल्लों में सटीक बैठती है। नया बाजार मोहल्ले के 700 से अधिक आबादी वाले करीब डेढ़ सौ घरों में जल संकट इस कदर नासूर बन चुकी है कि लोग थाली के बजाय दोना और पत्तल में भोजन करने को मजबूर हैं। इन घरों के तमाम पेयजल को एक माह पूर्व ही सूख चुके हैं। जबकि अधिकांश घरों के बोरिंग दम तोड़ दिया है। आलम यह है कि आधा दर्जन से अधिक घरों के लोग अपने पास के गाँव में पलायन करने को मजबूर हो गए हैं। अधिकांश लोग पानी खरीद कर पीने को विवश हैं। पानी की किल्लत के कारण 15 दिनों में कपड़े की सफाई कर रहे हैं। लोग ठीक से स्नान नहीं कर पा रहे हैं। नगर परिषद का पानी से भरा टैंकर भी धोखा दे जाता है। जिससे लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई है।

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग पानी की सप्लाई करने में पूरी तरह विफल

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग पानी की सप्लाई करने में पूरी तरह विफल रही है। लोग प्रतिदिन पानी सप्लाई की आशा लगाए सुबह से ही सड़क किनारे दलों के समीप बाल्टी लेकर कतार में लगे रहते हैं। लेकिन हाथ लगती है सिर्फ निराशा। खासकर महिलायेंं और युवा इस विकराल समस्या के समाधान को लेकर दिलचस्पी नहीं लेने वाले जनप्रतिनिधियों और विभागीय अधिकारियों के प्रति आक्रोशित हैं। लोगों का कहना है कि जल संकट आखिर चुनाव में बड़ा मुद्दा क्यों नहीं बनता है? इस बार के लोकसभा चुनाव में जनप्रतिनिधियों को जोरदार तरीके से मजा चखाएंगे। वोटरों की समस्या के प्रति संजीदा नहीं रहने वाले जनप्रतिनिधि को इस मोहल्ले में प्रवेश करने से रोकेंगे।

प्रतिदिन 60-100 रुपए का पानी खरीदने को मजबूर हैं। बावजूद घर में दिनचर्या का कार्य पूरा नहीं होता है। पानी के अभाव में भीषण गर्मी में भी दो दिन पर नहाने को मजबूर हैं। जनप्रतिनिधियों के उपेक्षा का खामियाजा लोकसभा चुनाव में भुगतना होगा। खुशी प्रसाद राय सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक नगर परिषद और पेयजल एवं स्वच्छता विभाग जल संकट का समाधान करने में विफल रही है। दिन रात पानी की चिंता लोगों को सता रही है। पानी की जुगाड़ में आधा से अधिक समय बीत जाता है। लोकसभा चुनाव में वोट मांगने वाले प्रत्याशी को मोहल्ले में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। डॉक्टर मार्गरेट -75 साल की उम्र में भी पानी की जुगाड़ करना पड़ रहा है। इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है। लोकतंत्र को मजबूत करने के नाम पर मतों का प्रतिशत बढ़ाने के लिए पूरा तंत्र लगा हुआ है। लेकिन जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सिस्टम विफल है। बूंद-बूंद पानी के लिए लोगों को भटकना पड़ रहा है।

लोकसभा चुनाव में मतदाता सबक सिखाने के लिए कमर कस चुकी है

लोकसभा चुनाव में मतदाता सबक सिखाने के लिए कमर कस चुकी है। -हरदेव मंडल ने सपने में नहीं सोचा था कि पानी के लिए रतजगा करना पड़ेगा। अहले सुबह से ही नगर परिषद का टैंकर और पेयजल स्वच्छता विभाग की सप्लाई वाली नल की ओर ध्यान लगा रहता है। लेकिन निराश होकर पानी की जुगाड़ में इधर-उधर भटकना पड़ता है। प्रतिदिन 50 रुपए से अधिक का पानी खरीद कर घर का कामकाज करने को विवश हैं। शुद्ध रूप से पीने के लिए पानी भी नहीं मिल रहा है। किसी भी सूरत में मोहल्ले की महिलायेंँ जनप्रतिनिधियों कि इस उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं करेगी और चुनाव में मजा चखाएगी। -सुजाता देवी

Last updated: अप्रैल 10th, 2019 by Ram Jha