संसद के केंद्रीय कक्ष में सर्वश्रेठ सांसदों को पुरस्कृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा…

उपस्थित सभी वरिष्‍ठ महानुभाव……मैं सबसे पहले सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले इन पांचों महानुभावों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, उनका अभिनंदन करता हूँ। देश टीवी पर ये दृश्‍य देखता होगा और बहुत आश्‍चर्य अनुभव करता होगा कि आज सांसद हैं जो दिन में दिखाई देते हैं। और उपराष्‍ट्रपति जी और स्‍पीकर महोदया भी शायद आज सबसे ज्‍यादा प्रसन्‍न होंगे ये दृश्‍य देख करके कि शांत विद्यार्थी। हम आशा करते हैं कि ऐसा दृश्‍य, दोनों सदनों में भी उसके दर्शन करने का अवसर मिले। और हमें हमारे सांसद जो धरती से उठ करके आए हैं, जन सामान्‍य के सुख-दुख के साथ जुड़े हुए हैं, उनको बात करने का अवसर मिले। सरकार को उनकी बातों को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर होना पड़े।

दूर-सुदूर गाँव के, जंगल की, गरीब की आवाज इन सांसदों के माध्‍यम से सरकार तक ऐसे पहुँचे कि सरकार को भी उन भावनाओं को समाहित करके आगे बढ़ने के लिए मजबूर करे। लेकिन दुर्भाग्‍य से सांसद का वो अवसर, वो सामर्थ्‍य, वो अपने क्षेत्र में कितनी ही तपस्‍या करके आया होगा, वतृत्‍व हो या न हो वो कतृत्‍व का धनी है। लेकिन शोर-बकोर, हो-हल्‍ला– सरकार का उससे कम से कम नुकसान होता है; देश का सबसे ज्‍यादा नुकसान होता है। और उन जनप्रतिनिधि का नुकसान होता है कि जो इतनी मेहनत करके, धरती से निकल करके, लोगों से जिंदगी गुजार करके आया है, जो उनके दुख-दर्द बताना चाहता है; वो बता नहीं पा रहा है। और इसलिए अगर नुकसान किसी का होता है तो जिस क्षेत्र से वो आता है,

उस क्षेत्र के सामान्‍य मानवी का होता है। नुकसान होता है, उस सांसद का होता है और दिनभर हो-हल्‍ला, टीवी पर उसकी आयुष दो मिनट, पाँच मिनट या 15 मिनट या एक दिनभर रहती है-परदा गिर जाता है, खेल खत्‍म हो जाता है। लेकिन जिसको बात करने का मौका मिलता है, सरकार की कठोर से कठोर आलोचना करने के लिए तर्क भी हों, तीखे वचन भी हों; उसके बावजूद भी वो हर शब्‍द इतिहास का हिस्‍सा बनता है, चिरंजीव बन जाता है। अब सबका दायित्‍व है कि हमारे हर सांसद साथी का शब्‍द चिंरजीव बने। हम सबका दायित्‍व है हमारे शब्‍द सांसद के दिल से निकली हुई वो गाँव-गरीब किसान की बात सरकार को कुछ करने के लिए मजबूर करे। ये स्थिति सदन में हम सब पैदा कर सकते हैं। और जितना अच्‍छे ढंग से पैदा करेंगे, देश को आगे ले जाने में उसकी ताकत और बढ़ेगी।

मेरा अनुभव है, कोई सांसद की बात ऐसी नहीं होती है जिसका महात्‍मय न हो, जिसका मूल्‍य न हो। मिर्जा के दबाव के कोई तत्‍कालीन स्‍वीकार करे, न करे अलग बात है। राजनीतिक point gain करने के लिए कुछ करना पड़े न करना पड़े, वो एक अलग स्थिति है, लेकिन ये गहरी छाप छोड़ करके जाता है जो नीति-निर्धारकों के लिए कभी न कभी सोचने के लिए मजबूर करता है। और इसलिए सांसद बन करके आना, ये सामान्‍य बात नहीं है। सवा सौ करोड़ देशवासियों के सपने ले करके आते हैं, अपने क्षेत्र के संकल्‍प ले करके आते हैं, उज्‍ज्‍वल भविष्‍य का वादा कर-करके आते हैं। और उस काम को निभाने में जिस-जिस को अवसर मिला है, उनमें से कुछ बंधुओं को हम आज हमें सम्‍मानित करने का अवसर मिला है और अपने साथ बैठने-उठने वाले साथियों का सम्‍मान होता हो, तब हमारा भी तो सीना चौड़ा हो जाता है। हमें भी गर्व होता है कि हम ऐसे-ऐसे वरिष्‍ठ साथियों के साथ, इस कालखंड में हम भी एक साथी कार्यकर्ता थे, हम भी एक साथी के सांसद थे। ये हमारे लिए भी गर्व की बात है।

Last updated: अगस्त 6th, 2018 by News Desk

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