बेटी है तो आनेवाला कल है, अगर यह बात कही जा रही है तो यह शब्द बेटी पर बहुत ही सटीक बैठती है, बेटियों के लिए आज का दिन हमसब राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के रूप में मनाते है यह वाकई में उतना ही कड़वा सच है जितना की आज की बेटियाँ अपने आपको असहज इस सामाजिक परिवेश को मानती है एक पिता की नजरों में बेटी किसी परी से कम भी नहीं होती है, किन्तु समस्या तो उस वक्त खड़ी हो जाती है जब एक बेटी अपने पिता को सामाजिक चोट पहुँचाने का कार्य कर जाती है हालांकि सभी बेटियाँ ऐसी नहीं है किन्तु कुछ तो है जिसका की खामियाजा औरों को भी भुगतनी पड़ रही है मान और सम्मान में एक पिता और माता ही नहीं अपितु परिवार के सभी सदस्य बेटियों के मान व सम्मान में कोई कमी नहीं करता है फिर भी आज के डेट में कमी हो जा रही है किसकी गलती है और कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी तो किया आज के बच्चे पहले से ज्यादा परिपक्व हो गए है या उन्हें दुनिया दारी की परवाह की कोई फ़िक्र नहीं है अगर ये कहा जाए तो कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा एक बेटी माता और पिता का स्वाभिमान होती है।
पिता की पगड़ी की लाज़ भी बेटियाँ ही है किन्तु समय के साथ-साथ वो संस्कार आज धूमिल होती जा रही हैं एक पिता की नजरों में बेटियाँ आज भी किसी गुड़िया से कम नहीं आँकी जाती हैं, पापा की परी भी आज की बेटियाँ ही हैं, आज की बेटियों का बचपन और बचपना सब उनके पापा पर निर्भर होता हैं और एक बेटी के लिए उसका पिता ही एक रियल हीरो हैं और यह एक परिकल्पना नहीं सास्वत सत्य हैं आज की बेटियों को मैं इतना ही कहना चाहूँगा की एक पिता की ताज़ होती हैं बेटियां, माँ के आँचल का लाज होती हैं बेटियां, एक भाई का स्वाभिमान होती हैं बेटियां, एक बहन की सहेली होती हैं बेटियाँ और एक पूरे परिवार का स्वाभिमान होती हैं बेटियाँ और एक बेटियाँ खुद के लिए ससम्मान होती हैं, सभी बेटियों को समर्पित: अरुण कुमार