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मेरी बात, “फैमली कोर्ट एक वरदान या अभिशाप” अरुण कुमार

फैमिली कोर्ट की अभिलाषा या अभिशाप,,,,,,आज के तारीख में किया चक्कर हैँ कि सारे लोग फैमली कोर्ट का ही चक्कर लगा रहे हैँ कहने और सुनने में तो यह बड़ा अटपटा लगता हैँ किन्तु अगर हमसब इसके कड़ी दर कड़ी को अगर जोड़ते हैँ तो बात सत्यता की ओर लेकर जाती हैँ किया हो गया हैँ आज के युथ को की ये लोग अपनी शादीसुदा जिंदगी को झेल नहीं पा रहे हैँ कोई भी कोर्ट हो या फैमली कोर्ट एक पति पत्नी से बढ़िया कोई भी कॉउंसलिंग नहीं कर सकता हैँ आज की युवा पीढ़ी काफी अग्रेसिव हो गई हैँ सबको जल्दी पड़ी हैँ और एक नई नवेली दुल्हन खासकर इस इकईस्वी सदी की महिलाये भी किसी मामले में अपने आपको कम नहीं समझती हैँ तो कौन समझायेगा इनको और कौन लेगा इनकी जिम्मेदारी मेरी कलम में वो धार हैँ जो की इस युवा पीढ़ी को समझाने के लिए काफी हैँ फिर भी आज के शादी सुदा युवा ये तेरा घर और ये मेरा घर के चक्कर में पड़कर अपनी शादीसुदा घर गिरिस्ती में आग लगाने का कार्य कर रही हैँ कहने को तो यह भी आप कह सकते हैँ कि अगर ये युवा यह समझ पाए की अगर इनका घर सही रहेगा तो घर के सारे भाई और सम्बन्धी सही रहेंगे, और अगर सभी सम्बन्धी सही रहेंगे तो बगल के पड़ोसी सही रहेंगे, और अगर पड़ोसी सही रहेंगे तो समाज सही रहेगा, और अगर आप और हम सही रहेंगे तो आनेवाला कल सही रहेगा तभी तो आज हम यह कह सकते हैँ कि एक कोर्ट अपनी फैमली से बड़ा नहीं हो सकता हैँ अगर बड़ा ही बनना हैँ तो पहले अपना अपना दिल को बड़ा करना सीखें अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब फैमली तो होगा किन्तु आज के युवा का मुकदमा फैमली कोर्ट में चलेगा और चलता रहेगा अब यहाँ पूर्ण रूप से जिम्मेदारी एक माँ की होती हैँ कि वो अपनी बेटी और बहु को कैसे ट्रीट करती हैँ एक समझदार माँ ही अपनी बेटी को सही संस्कार दे सकती हैँ क्योंकि एक माँ का दाईत्व अपनी बच्ची के लिए सर्वोपरी होता हैँ और एक बेटी को भी यह बात भलीभांति समझनी होंगी की पति और पत्नी का रिश्ता केवल एक रिश्ता ही नहीं अपितु भगवान का वो लकीर हैँ जो की दोनों को साथ साथ रहने और निभाने को प्रेरित करता हैँ और उनका आशीर्वाद भी घर के सभी परिवार को प्राप्त होता हैँ।

Last updated: मई 25th, 2022 by Arun Kumar