मेरी बात,….., सिंदूर की कीमत आज का यह टॉपिक अपने आपमें काफी कुछ कहने वाला और काफी कुछ समझने और समझाने वाला हैँ क्योंकि ज़ब बात आ जाती हैँ कि एक चुटकी सिंदूर की तो यह सिंदूर एक नई नवेली दुल्हन को ना तो दूल्हे का बाप देता हैँ, ना ही भाई, ना ही कोई दोस्त ना ही कोई दूल्हे का सगा सम्बन्धी ही देता हैँ अगर कोई यह सिंदूर देता हैँ तो वो स्वयं दूल्हा होता हैँ फिर जिम्मेवारी भी उसी लड़के की हो जाती हैँ क्योंकि सिंदूर देने के पश्चात ही वो दुल्हन उस दूल्हे की धर्मपत्नी व अर्धांगिनी जो कहलाने लग जाती हैँ, किन्तु उसी सिंदूर की कीमत का अहसास जब ना ही दुल्हन और ना ही वो दूल्हा कर पाता हैँ तो आप इसे समय की विडंबना ही कह सकते हैँ कि गाहे बगाहे उस सिंदूर का धर्म और फ़र्ज दोनों ने बदस्तूर नहीं उठाया या यह भी कह सकते हैँ इनके परिवार ने ही इन दोनों को एक दूसरे से दूर करा दिया हैँ,ऐसा भी कहा जा सकता हैँ किन्तु मोटा मोटी मुझे एक बात समझ में आती हैँ कि अगर एक लड़का के द्वारा जब लड़की को सिंदूर दान कर दिया जाता हैँ तब सारी जिम्मेदारी और जवाहदेही उस लड़के की हो जाती हैँ क्योंकि सिंदूर दान और सिंदूर की कीमत केवल और केवल पति और पत्नी पर निर्भर करती हैँ कि वे अपनी जिंदगी की गाडी कैसे आगे खींचती हैँ और अपने शादीशुदा जीवन को आगे कैसे निभाती हैँ,
यद्धपि एक सिंदूर की कीमत का ज्ञान वो इंसान ज्यादा समझ जाता हैँ जिसको की उस सिंदूर की कीमत का अहसास हो जाता हैँ तो फ्रेंड्स, प्राण चला जाए पर सिंदूर की कीमत कभी भी धूमिल ना होने पाए,
अरुण कुमार, लेखक सह पत्रकार,
शाखा प्रबंधक, भागवत ग्रुप कारपोरेशन,