मेरी बात……….क्लाइंट, और रिश्तेदार में अंतर…… लेखक सह पत्रकार, @ अरुण कुमार, आज का यह टॉपिक रिश्तों की भीड़ में क्लाइंट और रिश्तेदार दोनों शब्द ही एक दूसरे का अभिप्राय हैं तो मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ इसके पीछे भी एक लॉजिक ही हैँ क्योंकि कुछ लोग या कुछ रिश्तेदार रिश्ता में भी क्लाइंट को ढूंढ रहे हैँ वे जस्ट एक ग्राहक की भांति रिश्तेदार को ट्रीट भी कर रहे हैँ और यही आज के डेट की सबसे बड़ी विडंबना भी हैँ कि वे रिश्तेदार उस रिश्ता में भी अपना क्लाइंट को खोज रहे हैँ तो किधर से रिश्ता बचेगा ये एक सवाल हैँ मेरी ओर से उन सभी रिश्तेदारों के लिए जो की रिश्तों की अहमियत को भूल चुके हैँ या भूलने की कगार पर हैँ, मित्रवर मेरा एक सुझाव हैँ उन सभी रिश्तेदारों से की प्लीज आप सिर्फ रिश्ता निभाए उस रिश्ते में अपना क्लाइंट ना ढूंढे वर्ना अगर सारे रिश्तेदार इसी तरह एकदूसरे के साथ रिश्ता निभाएंगे तो कैसे रिश्ता बचेगा फिर तो वहीँ बात हुई कि ना रिश्ता बचेगा और ना ही रिश्तेदार फिर बचेगा किया वहीँ कुछ लोग दिग्भ्रमित भी हुए पड़े हैं वे समझ ही नहीं पा रहे है कि कैसे रिश्ता को बचाया जाए जबकि समाज और रिश्तेदार उनसे किया किया उम्मीदें लगा कर बैठे हुए हैँ उन्हें पता ही नहीं हैँ वहीँ इसका एक दूसरा पहलु भी हैँ कि आज के डेट में रिश्तेदार तो बहुत हैं किन्तु रिश्ता को बचा कर रखने वाले बहुत कम बचे हैँ वहीँ रिश्ता को बचाने में आज जो सबसे बड़ा एक कारण उभरकर आ रहा हैं वो यह हैँ कि आज की युवा पीढ़ी अपना पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को एक साथ घिटमाघिट जो कर के बैठे हैँ तभी तो उन्हें ना ही रिश्तों की परवाह हैँ और ना ही रिश्तेदारों की फिर कमी कहाँ हैँ और कौन गलत हैँ ये भी एकप्रकार से सोचने वाली बात ही रह गई हैँ मैं मेरी भावनाओं को सदैव ही मुखर होकर रखता हूँ किन्तु कुछ लोग स्वयं में काफी परिपक्व होकर भी क्लाइंट, ग्राहक और रिश्तेदार के बीच के अंतर को ना ही समझ पाए हैँ और ना ही वे समझने की ही कोशिश कर रहे हैँ, और अब भला उन्हें कौन समझायें की इस जीवन के अलावे भी एक जीवन हैँ जिसे हमसब सिर्फ और सिर्फ एक रिश्तों की डोर के सहारे ही जोड़े हुए हैँ और यही सम्बन्ध का अहसास मात्र ही आपसी सम्बन्ध को जोड़ने के लिए काफी हैँ जिसको की आज सबों को सृजन करने की जरुरत हैँ अन्यथा तभी आज एक बात छन कर कहीं जा रही हैँ कि इन रिश्तों की भीड़ में ना तो रिश्ते बचेंगे और ना ही रिश्तेदार,,
अरुण कुमार, लेखक सह पत्रकार