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मेरी बात — “पति बना बली का बकरा ” लेखक सह पत्रकार @ (अरुण कुमार )

मेरी बात आज का विशेष अंक — कि ” पति बना बली का बकरा,” #ना घर का रहा ना घाट का #,

आज का यह टॉपिक कई मायनों में खास हैँ और खास हो भी क्यों ना जब बात आज के इस कलयुग रूपी समाज में सभी कर्मयोगी पतियों के बारे में लिखी जा रही हैँ तो स्वाभाविक हैँ कि एक पति अपने मान और सम्मान बचाने के लिए प्रतिदिन ना जाने सुबह से शाम तक किया – किया कर्म करता हैँ इसका तनिक सा भी अहसास आज की इन धर्मपत्नियों को जरा सा भी नहीं हैँ और ना ही उन्हें इस बात का अहसास ही होता हैँ कि उनके पति किया से किया जतन करते हैँ तब जाकर समाज उसके रहने लायक बन पाया हैँ वहीँ इस मामले में ज्यादातर पढ़ी लिखी धर्मपत्नीयाँ ज्यादा माथापच्ची करती हैँ वजाय कम पढ़ी – लिखी धर्मपत्नीयों की अपेक्षा, जो की एक साशवत सत्य भी प्रतीत हो रहा हैँ जबकि आज का पति परिवार हो या समाज या हो कोई भी रिश्तेदार सभी जगहों पर वो अपना रिश्ता अच्छी तरह से लेकर चलने की कोशिश करता हैँ और प्रयासरत भी रहता हैँ कि सगे सम्बन्धी ना छुटे और कोई ना रुठे इसके वजापते एक धर्मपत्नी को सदैव ही उसके मन में यह उठापटक रहती हैँ कि उसका पति मेरी बात नहीं सुनते हैँ जबकि ऐसा नहीं हैँ सिर्फ समझ का फेर ही आप इसको कह सकते हैँ बेचारा पति किया करे वहीँ कई मामलों में अक्सर ये बातें निकल कर आती हैँ और अक्सर सबों की धर्मपत्नीयों को एक ही शिकायत होती हैँ कि आप अपनी माँ को कुछ नहीं बोलते हैँ और ठीक इसके विपरीत मेरी माँ से ऐसे बात नहीं करियेगा यहीं फर्क हैँ और तो और अगर यही अंतर रखना हैँ तो सभी धर्मपत्नीयों को मेरी ओर से एक नसीहत हैँ कि अगर आप अपने माँ बाप का तिरस्कार नहीं सह सकते हैँ तो कोई भी आज का एक कर्मयोगी पति अपने माँ और बाप का कैसे अपमान कर सकता हैँ यहीं फर्क हैँ सोच और नज़रिया का और यहीं कड़वी सच्चाई भी हैँ तभी रिश्ते मूव होते होते आज एक पति पूरी तरह से बली का बकरा बन बैठा हैँ मुझे यह कहने और लिखने में जरा सा भी झिझक नहीं हो रहा हैँ कि अगर बात धर्मपत्नी की हो तो ठीक हैँ और एक कर्मयोगी पति पर आ जाए तो पति ही तो हैँ ये कैसे चलेगा वहीँ आज के पति बेचारे शर्म के मारे किधर का रुख करे और बीच में दो धारी तलवार पर अटकी एक कर्मयोगी पति की गर्दन और पति की अंतिम इक्षा की कैसे गर्दन ना कटे तभी तो यह कहा गया हैँ कि एक पति ही बनता हैँ बली का बकरा अब इज्जत कैसे बचेगी इसी उहापौह में जीवन को जीता हैँ एक कर्मयोगी पति,वहीँ आज कई मामलों में अक्सर यह देखा जा रहा हैँ कि एक पति का कार्य घर के बाहर ही शोभा देता हैँ जबकि धर्मपत्नी का कार्य घर के अंदर जो की सत्य हैँ अन्यथा फिर घर का वजूद खत्म हो जाता हैँ वहीँ अगर एक पति घर में एक दिन भी बेगारी बैठ जाए तो धर्मपत्नियों के किया कहने उन्हें तो केवल अपने काम की ही चिंता खाये जाती हैँ वहीँ पति अपने ही निवास स्थान में घर का मुर्गी दाल बराबर के हिसाब से माना जाता हैँ और यहीं गड़बड़ हैँ, क्योंकि धर्मपत्नीयाँ पति की परछाई होती हैँ और उन्हें अपने पतियों के अनुरूप ही कार्य करते रहना चाहिए ना कि पति को केवल बली का बकरा मान कर चलना चाहिए अन्यथा पति तो रहेगा किन्तु ना वो घर का रहेगा ना घाट का, तभी तो सब समझ का फेर है इसी को मानकर कार्य करना चाहिए,

सभी कर्मयोगी, धर्मपति को समर्पित, आभार —- अरुण कुमार, मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क

(भागवत ग्रुप कारपोरेशन )

Last updated: दिसम्बर 16th, 2023 by Arun Kumar