मेरी बात
एक लड़की की मायके में मान और एक सुहागन का ससुराल में सम्मान अपने आप में बहुत ही अविस्मरणीय अनुभूति को दर्शाता हैँ और यह हो क्यों ना की जब बात आ जाती हैं उस लड़की की मायके में बिताये उस पल का ज़ब उसने अपने परिवार के साथ जिस तरह से बिताया हैँ वाकई में वो एक सुखद पल उस लड़की के लिए सच में अद्भुत होता हैँ और अब वही लड़की एक सुहागन बनकर अपना सबकुछ छोड़कर अपने ससुराल की ओर रुख कर रही होती हैँ जबकि विधि का विधान कहें या पुरानी परम्परा की ज़ब एक लड़की तब तक ही लड़की रहती हैँ जब तक की वो अपने मायके में रह रही होती हैँ किन्तु जैसे ही वो सुहागन बनती हैँ उसका निवास और प्रवास बदल जाता हैँ और वो अब सदा के लिए ही ससुराल के लोगों के लिए हो जाता हैँ उस लड़की की भावना अब वो वाली भावना नहीं रह जाती हैँ कि जब वहीँ लड़की अपने मायके में कभी पिताजी कभी माँ तो कभी भाई और कभी अपनी बहन से बात बात पर लड़ना, रूठना और एकदम से हॅसते हुए मान जाना कभी भी किसी बात को ज्यादा भाव ना देना वगैरा वगैरा ये सारी जो भी उस समय वो लड़की किया करती थी ठीक इसके उलट अब वो लड़की किसी की धर्मपत्नी तो किसी की बहु तो किसी की भाभी तो किसी की दीदी का रूप ले ली होती हैँ अब वो मायके में लाड़ लड़ाने वाला भाई ज्यादा समय नहीं दे पाता हैँ जबकि माँ और पिताजी भी कभी कभार ही मिलने आ पाते हैँ अब उस लड़की का जीवन अपने ससुराल के लोगों के प्रति ज्यादा तवज्जो देने को तत्पर हो रहा होता हैँ अपितु समय का तकाजा कहें या कुछ और कहें आज मायके में पली बढ़ी बेटी किसी के घर की बहु जो बन गई हैँ उसे कदापि इस बात का बोध नहीं होता हैँ कि कल तक जहाँ वो लड़की अपना बचपन बिताई आज उसी घर से वो एकदम से पराई कर दी गई हैँ अब बात आ जाती हैँ एक लड़की के मायके की मान का तो कल तक उस लड़की ने जो कुछ भी अपने मायके में अपने परिवार के साथ किया, सीखी, जानी और समझी वहीँ अब उसे अपने ससुराल में एक सुहागिन के रूप में प्रस्तुत करना हैँ जो की किसी सच्चाई से कम भी नहीं हैँ तभी उस लड़की के लिए सही मायने में मायके का मान के साथ साथ ससुराल का सम्मान भी बना रहेगा अपितु कई मामलों में आज कुछ ही सुहागिनें मायके की लाज और ससुराल का सम्मान एक सही नियत और नियम से कर पा रही हैँ जबकि सही मायने में मायके का मान और ससुराल का सम्मान किस प्रकार से किया जाए यह ज्ञान सभी महिलाओ को अवश्य होना चाहिए क्योंकि इन्हीं के कंधों पर मायके और ससुराल का बोझ रहता हैँ और इसी बोझ को जो सुहागन अपना लेती हैँ उसका जीवन सच में धन्य हो जाता हैँ और वो मायके के साथ साथ ससुराल में भी अपना मान और सम्मान बना लेती हैँ
अरुण कुमार, मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क,
Bhagwat group corporation,,