मेरी बात….कर्म का लेखा,, @लेखक सह पत्रकार अरुण कुमार,…..आज का यह शब्दार्थ कि कर्म का लेखा एक शास्वत सत्य की ओर ईशारा करता हैँ और ईशारा हो भी क्यों ना जब बात आती हैँ कर्म करने की तो यही बात अपने से शुरू होकर अपनों पर ही ख़त्म भी हो जाती हैँ और सारे रिश्तेदार पर लागू भी हो जाती हैँ किन्तु समय की यह बहुत बड़ी विडंबना हैँ दोस्तों और कहावत भी एक चरितार्थ हैँ कि बोया पेड़ बबुल का तो आम कहाँ से होय और जीवन भर दूसरों को हतोत्साहित करें तो पुण्य किधर से पाएं यह दोनों टॉपिक समझने और समझाने के लिए काफी हैँ किन्तु कुछ इंसान सब कुछ किधर याद कर पाता हैँ जबकि एक इंसान को कभी भी अपनी इंसानियत को दरकिनार करके कार्य नहीं करनी चाहिए ऐसा मेरा मानना हैँ क्योंकि समस्या हैँ तो उसका निराकरण भी हैँ परिवर्तन संसार का नियम हैँ अपितु कुछ लोग भय पुर्वक अपने जीवन को जी रहें हैँ यही गलत हैँ उन्हें लगता हैँ कि वे जो कुछ भी कर रहें हैँ वहीँ सही हैँ किन्तु ऐसा नहीं हैँ चुकि हमसबके बीच में समाज भी एक कड़ी ही हैँ और उसे दरकिनार कर अगर कोई इंसान चलता हैँ तो यह भी उस महानुभाव के लिए एक सबक ही हैँ क्योंकि समाज का यह एक वर्ग ऐसा भी हैँ जो कि सरसरी निगाहें से सब कुछ देखता हैँ और समझता भी हैँ किन्तु कहता कुछ भी नहीं हैँ अपितु अंत में सब कुछ जानकारी जुटा कर दोषारोपण करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ता हैँ वैसे अगर समाज को हमसब दरकिनार कर भी दें तो बात परिवार पर आकर ही रूकती हैँ क्योंकि परिवार का अर्थ कुछ लोग समझकर भी नहीं समझना चाहते हैँ तो फिर कौन गलत हैँ इसका जवाब भी किसी के पास नहीं हैँ और जब बात आती हैँ अपनत्व कि तो सभी अपने बेगाने क्यों लगने लगते हैँ ये बातें भी समझ से परे हो जाती हैँ, वहीँ स्वयं को परिभाषित करते हुए जो कार्य हो जाए वास्तव में सही कार्य वही कहलाती हैँ ऐसा मेरा मानना हैँ चुकि मैं लेखक के साथ साथ पत्रकार भी हूँ तो मेरा मन और सोच उसी जगह पर आकर केंद्रीत होता हैं जहाँ से मैं स्वयं को परिभाषित कर सकूँ किन्तु वहीँ अक्सर कई मामलों में किया कहूँ कुछ ज्यादा समझ नहीं पाता कि ऐसा क्यों और किसलिए और किसके लिए तो दोस्तों अपने ऊपर विश्वास और भरोसा रक्खे बाकी कुछ काम को कर्म प्रधान के अनुरूप करें तो आप देखेंगे कि सभी चीजें आपके अनुरूप कार्य करने लगी हैँ अपितु समय कि विडंबना कहिये कि कुछ लोग अपने में ही इतना उलझे हुए हैँ कि उन्हें इनसब बातों से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता हैँ कोई इंसान किया किया सपने उस शिधपुरुष के लिए लगाकर बैठा हैँ और गलती यही हो जाती हैँ क्यों क्योंकि वो इंसान सब कुछ जानकार भी अंजान जो बना रहता हैँ और यही गलत हैँ और जबतक उस इंसान को अपनी उस गलती का अहसास हो पाता हैँ तब तक काफी देर हो जाती हैँ क्योंकि अगर आपमें निर्णय लेने कि क्षमता अभी तक नहीं आ पाई हैं तो आप एक पत्थर के समान हैँ ऐसा मेरा मानना हैँ तो देर ना करें समय के इस काळचक्र को समझें और अपने कर्तव्य का पालन करें अन्यथा आपका कर्म आपको कहीं का नहीं छोड़ेगी मेरी यह बात अभी बहुत से लोगों को समझ में नहीं आएगी किन्तु समय जल्द ही सबको समझाने का अवश्य कार्य करेगी, इसी आशय के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देता हूँ और आशा करता हूँ कि मेरी यह बात कुछ लोगों को दिग्भ्रमित के साथ साथ माइंड डेवलपमेंट करने का भी कार्य करेगी,क्योंकि ना कोई कुछ लेकर आया हैँ ना कुछ विशेष लेकर जाएगा सिर्फ जाएगा अगर कुछ उसके साथ तो उसके जीवन के कर्म का लेखा जोखा ही उसके साथ जाएगा
अब सोचना हैँ आपको की आप किया करेंगे,
आभार,
अरुण कुमार लेखक सह पत्रकार, मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क,
शाखा प्रबंधक, भागवत ग्रुप कारपोरेशन,