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मेरी बात,,,,एक बेटी का बाप,, लेखक सह पत्रकार, अरुण कुमार

मेरी बात,,,,, एक बेटी का बाप,,,, आज का यह टॉपिक लिख कर मैं कुछ ज्यादा उत्साह पूर्वक महसूस कर रहा हूँ और साथ ही साथ एक अनुभव भी साझा करना चाहता हूँ कि बेटियों को क्यों और किस लिए आज हमारे भारत देश में इनको इतनी मान्यता और एक तरह से पूजन किया जाता हैँ इस बात की ही ज्यादा संभावना होती हैँ कि एक बेटी कई मायनों में हमसब के घर की राज लक्ष्मी कही जाती हैँ कल्पना से हटकर एक विश्वास की भांति एक बेटी का बाप केवल और केवल उस पल को लेकर हमेशा भावुक रहता हैँ जब उनकी बेटियां पराई हो जाती हैँ जबकि एक बेटी का बाप उस दर्द को सदैव अपने जेहन में रखकर स्वयं को परिपक्व में रखते हुए उस परिकल्पना से हमेंशा अंगिभुत होकर तत्पर रहता हैँ बेटियां हमेशा से ही उत्पन्न की सागर मानी जाती हैँ उनकी उपलब्धियां ही एक पिता के मान और सम्मान में चार चाँद लगाने को सदा ही लालायित रहती हैँ प्रतिष्ठा को सदैव अपने जेहन में रखकर एक बेटी को अक्सर कार्य करते देखा जा सकता हैँ किन्तु आज की तारीख में कुछ बेटियों का मनः स्तिथि थोड़ी डगमगा सी गई हैँ जैसा की अक्सर देखने और सुनने को मिलता हैँ किन्तु कुछ अपवाद को अगर छोड़ दिया जाए तो भी आज की बेटियां किसी भी मामले में किसी से पीछे भी नहीं हैँ अब बारी आती हैँ कि एक पिता के उस दर्द के अहसास का जो की आज के तारीख में वे महसूस कर रहे हैँ एक बाप सदैव उस घड़ी का इंतजार में रहता हैँ जब उसकी बेटी किसी और के घर की अमानत हो जाती हैँ और वो बाप उस पल को अपने जेहन में रखकर उस घड़ी को अपने सिने पर पत्थर रख कर उस घड़ी को याद सदा ही रखता हैँ जब वो अपनी उस फूल सी बच्ची को किसी और को दान के माध्यम से दे देते हैँ वो पल उस पिता के लिए सदा ही कष्टकारी रह जाता हैँ किन्तु कुल मिलाकर विधि का विधान भी यही हैँ कि एक बेटी सदा ही उस पिता के लिए एक परि ही रहती हैँ ज़ब वो छोटी भी रहती हैँ या जब वो बड़ी भी हो जाती हैँ कुलमिलाकर यहाँ एक बात तो साफ हो जाती हैँ कि एक बेटी स्वयं में परिपक्व होकर भी सदैव एक पिता के प्रति समर्पित रहती हैँ किन्तु एक बेटी के बाप का दर्द का कल्पना भी कोई नहीं कर सकता हैँ जबतक कि उस व्यक्ति के पास अपनी बेटी ना हों, बेटी का यह अनमोल रिश्ता एक बाप के लिए उस रोशनी को प्रज्वलित करता हैँ जिसका आस हर उस शख्स को रहता हैँ जिसके पास की बेटियां नहीं हैँ किन्तु बेटी के बाप का दर्द उस समय ज्यादा महसूस होता हैँ जब वो उस बेटी को दान कर के किसी और के घर के लिए सम्मान पुर्वक विदा कर देता हैँ और जीवन भर उसके याद में आँशु बहाता हैँ

इस लेख के साथ मैं आज अपने नई पुस्तक,,,,लाइफ इस लाइक ए कैमरा,,,, का डेमो भी साझा कर रहा हूँ,,,, एक बार अवश्य पढ़े, धन्यवाद,

लेखक सह पत्रकार,, अरुण कुमार, मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क,
शाखा प्रबंधक, भागवत ग्रुप कारपोरेशन,

Last updated: दिसम्बर 5th, 2022 by Arun Kumar