मेरी बात “आज की दोस्ती मतलब की यारी ” ( माचिस तो यूँ ही बदनाम हैँ किसी को जलाने के लिए मेरे तेवर ही काफी हैँ ) @ अरुण कुमार लेखक सह पत्रकार
Arun Kumar
मेरी बात — “आज के दोस्त मतलब के यार “( माचिस तो यूँ ही बदनाम हैँ जलाने के लिए मेरे तेवर ही काफी हैँ ) == आज का यह टॉपिक ” D ” फॉर दोस्ती कई मायनों में खास है और खास हो भी क्यों ना क्योंकि ज़ब बात दोस्त और दोस्तों की आती हैँ तो सबसे पहले हमारे जेहन में एक सच्चे और एक अच्छे दोस्त की छवि अवश्य ही उभर आती हैँ और वहीँ आज अगर सच्चाई से पूछा जाए तो वाकई में एक सच्चे और अच्छे दोस्त का आकाल सा पड़ गया हैँ मानो ऐसा ही लगता हैँ जो की एक कड़वी सच्चाई भी हैं जबकि आज के दोस्त मतलब के यार ही हैँ क्योंकि उन्हें सिर्फ अपने मतलब से ही मतलब जो रहता हैँ जबकि एक दौर हम सारे दोस्तों का हुआ करता था जब सबके सब दोस्त बाहर से लेकर घर तक दोस्ती की परम्परा को जो निभाते थे उस समय दोस्त के माँ और बाप अपने माँ बाप की तरह लगते थे और उनका व्यवहार भी एक माँ बाप की तरह ही होता था अगर ये कहा जाए की दोनों दोस्त की फैमिली भी एक साथ परिवार की तरह ही एक दूसरे से मिला जुला करते थे किन्तु आज ठीक इसके विपरीत समय आन पड़ी हैँ ज़ब वहीँ दोस्त टाइम टू टाइम के साथ बदल से जो गए हैँ अब के दोस्त की कथनी और करनी में काफी फर्क आ गया हैँ जो की एक कड़वा सच हैँ वहीँ मतलब निकल जाने के बाद वही दोस्त किसी दुश्मन की तरह व्यवहार करने में जरा सा भी परहेज नहीं करते हैँ मेरी अंतरात्मा इस बात की गवाही नहीं देती हैँ कि दोस्ती केवल पैसे से ही हो अन्यथा दोस्त का मतलब ही बेमतलब सा हो जाता हैँ तभी तो आज के समय में मेरा एक ही कहना हैँ कि ” माचिस तो यूँ ही बदनाम हुआ पड़ा हैँ जलाने के लिए मेरे तेवर ही काफी हैँ ” दोस्तों की परिभाषा ऐसी हो की लोग एकदूसरे का मिशाल दे और दोस्ती ऐसी निभानी चाहिए की दोस्ती बेमिसाल हो जाए किन्तु कहाँ और किधर आज के दोस्त निभा पा रहे हैँ या निभाना चाहते हैँ कुलमिलाकर एक बात तो यहाँ साफ हो जाती हैँ कि दोस्त रखिए किन्तु मतलब के दोस्तों को ना रक्खे अन्यथा आप भी दुःखी रहेंगे और आपके दोस्तों के किया कहने सच में एक सच्चा और अच्छा दोस्त आपके सुःख और दुःख का एक सच्चा सिपाही व साथी होता हैँ किन्तु ये कलयुग हैँ मित्रवर सो बी केयरफुल अन्यथा आप स्वयं जानकार और जागरूकता से भरे पड़े हैँ विशेष समझाने की अब ज्यादा जरुरत नहीं हैँ