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पश्चिम बंगाल अनुसूचित हेला जातीय महासंघ ने मातादीन भंगी को दी श्रद्धांजलि

पश्चिम बंगाल अनुसूचित हेला जातीय महासंघ पश्चिम बर्धमान जिला सचिव सूरज हेला

पश्चिम बंगाल अनुसूचित हेला जातीय महासंघ, अण्डाल शाखा द्वारा विगत 29 नवंबर को 1857 के क्रांति के मूल जनक मातादीन भंगी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम किया गया एवं उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी । दुर्गापुर के आईक्यू सिटी अस्पताल के सहयोग से फ्री स्वास्थ्य जाँच शिविर का एवं नयन हॉस्पिटल आसनसोल के सहयोग से फ्री नेत्र जंच शिविर का आयोजन भी किया गया ।

इस अवसर पर पूरे भारत से हेला समाज के प्रतिनिधि उपस्थित हुये । कार्यक्रम में संघ के राज्य अध्यक्ष हरषि प्रसाद , राज्य सचिव मौजी लाल हेला, कार्यकारी अध्यक्ष भोला कुमार हेला, जिला सचिव सूरज हेला, जिलाध्यक्ष पप्पू हेला, अतिथि के रूप में बनारस से करण दास और आरसी त्यागी, इलाहाबाद से राजेश बाल्मीकी, रवि बाल्मीकी, कोलकाता से रमेश हेला, सुरेन्द्र कश्यप, बलिया से डॉ0 जगदीश रावत सहित काफी संख्या में हेला समाज के सदस्यों के अलावा अंडाल के स्थानीय लोग भी उपस्थित थे। सभी अतिथियों को गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया एवं सभी अतिथियों ने मातादीन भंगी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

मातादीन भंगी थे 1857 के विद्रोह के असली सूत्रधार

ज़्यादातर लोग जानते हैं कि 1857 की क्रांति के जनक मंगल पाण्डेय थे लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इस क्रांति के असली जनक मातादीन भंगी थे जो सैनिक छावनी से सटे उस कारखाने में काम करते थे जिसमें गाय और सूअर की चर्बी को मिलाकर कारतूस बनाए जाते थे। उस जमाने में कारतूस को बंदूक में भरने से पहले उसके खोल को दाँत से चीरकर हटाना होता था और चिकनाई के लिए कारतूस पर गाय अथवा सूअर की चर्बी लगाई जाती थी जो क्योंकि ये सस्ते में उपलब्ध थी।

एक बार मातादीन भंगी जो कि दलित समुदाय से थे वे कारखाने से बाहर निकलकर छावनी की ओर पानी पीने के लिए आए। उन्हें मंगल पाण्डेय दिख गए और उन्होंने मंगल पाण्डेय से पानी पिलाने को कहा। लेकिन दलित होने के कारण मंगल पाण्डेय ने मातादीन भंगी को पानी पिलाने से मना कर दिया जिस पर मातादीन भंगी को गुस्सा आ गया और कहा कि ये कैसा धर्म है तुम्हारा जो एक प्यासे को पानी पिलाने से मना करता है जबकि गाय और सूअर चर्बी लगे कारतूस को मुँह से खोलते हो।

मातादीन की बातें सुनकर मंगल पाण्डेय भौंचक्के रह गए और फिर उन्होंने पानी पिला दी । साथ ही यह बात उन्होंने छावनी में अन्य सैनिकों को भी बता दी जिससे हिन्दू एवं मुसलमान सभी सैनिक भड़क गए और धीरे-धीरे इस चिंगारी ने एक बहुत बड़े देशव्यापी विद्रोह का रूप ले लिया जिसे हम 1857 का विद्रोह के नाम से जानते हैं।

हालांकि अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचल दिया और जब बाद में इसकी चार्जशीट बनाई गयी तो मातादीन भंगी का नाम सबसे ऊपर था। कारतूस में चर्बी वाली बात फैलाने के जुर्म में उन्हें भी फांसी की सजा दी गयी।

Last updated: दिसम्बर 1st, 2018 by Pankaj Chandravancee