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करीब सौ वर्षों से यहाँ पूजा उत्सव होती आ रही है

ढाक की थाप व महाआरती के बीच होती हैं माँ दुर्गा की पूजा। करीब सौ वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। पूजा को लेकर करीब सारी तैयारियाँ पूरी कर ली गई है।  मूर्तिकारों द्वारा माँ दुर्गा की मूर्ति बनाने का काम जारी है।

वैसे तो लोयाबाद क्षेत्र में कई जगह दुर्गापूजा मनाई जाती है। क्षेत्र के कनकनी,सेन्द्रा व बांसजोड़ा की भी दुर्गापूजा पुरानी मानी जाती है पर लोयाबाद दुर्गामंदिर कि होने वाली पूजा अलग स्थान रखती है। आज के इस आधुनिकता के दौर में भी यहाँ परम्परागत पूजा के लिए विख्यात है।

बंग्ला पद्धति से होती है पूजा

यहाँ एक ही पाटा पर स्थापित माँ विराजमान होती है। बंग्ला पद्धति से होने वाली इस पूजा में संधि पूजा का बड़ा महत्त्व है। पूजा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पाती है।चुंकि वैष्णवी मंदिर होने के कारण इस पूजा में शर्करा की बलि दी जाती है पूजा में यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है।

झरिया में हुई एक घटना से पड़ी यहाँ के पूजा की नींव

पूजा कमिटी के पूर्व संरक्षक वयोवृद्ध हो चुके राधा रमन पांडेय व पूजा कमिटी के सचिव बिजेंद्र पासवान ने बताया कि 100 वर्ष पहले यहाँ के लोग पूजा उत्सव मनाने झरिया जाया करते थे। उस समय ऐसी व्यवस्था थी कि मज़दूरों के साथ बर्ड कम्पनी के सीएमई मण्डल साहब माँ के दर्शन को जाते थे।

मेले में  एक बार वहाँ के लोगों के द्वारा कुछ अभद्र व्यवहार किया गया। इससे मण्डल साहब नाराज हो गये। उन्होंने कोलियरी कार्यालय में मज़दूरों की बैठक बुलाकर दुर्गामंदिर की स्थापना करने का निर्णय लिया। उस समय यहाँ बंगाली समुदाय के अधिक लोग रहा करते थे। इसलिए मंदिर स्थापना के बाद बंग्ला पद्धति से पूजा अर्चना की शुरूआत हुई। जो आज तक परम्परा जारी है। उस समय सभी समुदाय के मद्देनजर बिरहा , कव्वाली,अन्य रंगारंग कार्यक्रम हुआ करता था। इस बार महानवमी की रात्रि में भव्य माँ भगवती जागरण का आयोजन किया गया है।

आरती में उमड़ती है भीड़

पूजा के दौरान यहाँ होने वाली आरती का बड़ा महत्त्व है। पुजारी अमोल कृष्णा भटाचार्य के अनुसार कई तरह से माँ की आरती उतारी जाती है। इसमें शंख,पुष्प माला,बेलपत्र,कपूर , धुना ,वस्त्र,आदि चीजे शामिल है। पूजा के दौरान करीब दो घण्टे तक रोज संध्या में ढाक की धुन पर होने वाली आरती में भक्त थिरकने लगते है। ऐसा आरती जिले के केवल हीरापुर मंदिर में किये जाने की परंपरा है।महाआरती में भक्तों की काफी भीड़ होती है। दूर दराज से यहाँ लोग आरती में भाग लेते है।

43वर्षों से लगातार पूजा सम्पन्न कराने वाले पुजारी अमोल कृष्णा भटाचार्य बताते है। यहाँ देवी की स्थान में काफी शक्ति है। बहुतो कि मन्नते पूरी हुई है। भक्तों द्वारा माँ के श्रृंगार के चढ़ावा पर पता चलता है कि माँ से किस किस को आशीर्वाद मिला है।

तीन पीढ़ियों से एक ही परिवार बना रहा दुर्गा की प्रतिमा

एक खास बात यह भी है कि यहाँ की माँ दुर्गा की मूर्ति एक ही परिवार के लोग बना रहे है। वर्तमान में मुर्ति बना रहे 50 वर्षीय छोटा अंबोना निवासी कल्लू सुत्रधर ने बताया कि सबसे पहले मेरे दादा स्व तीन कौड़ी सुत्रधर पिता स्व मदन सुत्रधर अग्रज स्व सुनिल के बाद हम बना रहे है। सदस्यों द्वारा मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार की यह तीसरी पीढ़ी है। यह हमलोग का खानदानी पेशा है।

सभी धर्मों के लोग आयोजन में भागीदारी निभाते हैं

उत्सव के दौरान सभी धर्मों के लोग आयोजन में भागीदारी निभाते हैं। पूजा कमिटी में मुस्लिम समूदाय के लोग भी सदस्य है। पूजा सफल बनाने में क्षेत्र के विभिन्न समासेवी संस्थाओं के अलावे स्वैच्छिक रक्तदाता संघ के साथ मुस्लिम कमिटी का भी सहयोग रहता है। प्रबुद्ध लोग भी पूजा की निगरानी करते है।

Last updated: अक्टूबर 4th, 2019 by Pappu Ahmad