कल्याणेश्वरी क्षेत्र के कल कारखानों में आज भी 12 घंटे कार्य करने को बेबस मजदूर
कल्याणेश्वरी: देश को विकाश की बुलंदी पर पहुचाने में यूं तो किसान और मजदूरों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है| जिनकी जी तोड़ मेहनत से ही मरुस्थल सी भूमि भी लहलहा उठती है या फिर बेजुबान पत्थर को तराश कर बेसकीमती मूरत बना दी जाती है, किन्तु उसके मजदूरी के दो रूपए अदा करने से पहले दिल्ली की तख़्त तक हिल जाती है| हालांकि उसी मेहनत की उपज से उद्योगपति से लेकर सफ़ेदपोश तक करोड़ों डकार लेते है| जिसके बाद शुरू होती है मजदूर हित की झुठी लड़ाई, पूरे प्रकरण में मजदूरों की हित की लड़ाई और राजनितिक पार्टियों को उनके हित की जंग आज खोखली साबित हो रही है, फलस्वरूप आज भी कल्याणेश्वरी क्षेत्र के कुछ उद्योगपति तानाशाही रुख अपनाकर मजदूरों का 12 घंटे तक शोषण करती है|
इस शोषण की फेहरिस्त में सबसे पहला नाम “सिटी सीमेंट प्लांट” का है
कल्याणेश्वरी महेशपुर स्थित उद्योग क्षेत्र में वर्षो पूर्व सीमेंट निर्माण कार्य से शुरू की गई सिटी सीमेंट प्लांट में आज सिटी स्टील, सिटी अलॉयज एक साथ संचालित होती है| जिसमे सीमेंट निर्माण, ब्लेड निर्माण, सरिया आदि निर्माण की जाती है।
इंडक्शन, सी,सी,एम्, रोलिंग मिल, समेत लैब में आज भी सैकड़ों मजदूर से लेकर कर्मचारी तक 12 घंटे की गुलामी करने को विवश है|
इस फेहरिस्त में दूसरा नाम जगदम्बा इस्पात का है
इस फेहरिस्त में दूसरा नाम जगदम्बा इस्पात की है, गगनचुम्बी दीवारों के भीतर यहाँ भी गुलामी प्रथा विकराल हो चुकी है| मजदूरों पर 4 घंटे की अतिरिक्त बोझ से ही आज इन उद्योगपतियों की मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स की सूचि में कंपनी, पूंजी समेत निदेशक की लिस्ट बढती ही जा रही है| इन क्षेत्रों में एक उद्योग से यात्रा की शुरुआत करने वाले उद्योगपति आज आठ आठ कंपनियो की बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर है| किन्तु मजदूर की दशा जस की तस बनी हुई है| ऐसे में मजदूरों के आँसू पोछने वाली विभिन्न ट्रेड यूनियन की नैया अब बीच भवर में हिचकोले खाती नज़र आ रही है|
मजदूर 12 घंटे काम करने को विवश हैं और बाबू 8 घंटे में मस्त हैं
यहाँ लगभग हर कार्य का कार्यकाल 12 घंटे ही होता है, किन्तु दफ्तर में कार्यरत कर्मी और मालिक बखूबी मजदूर नियमावली का आदर करते हुए 8 घंटे ही योगदान देते है| उद्योगपतियों की लम्बी पहुँच और राजनितिक सरपरस्ती के कारण मजदूरों की सिसकियाँ और मजदूर आयुक्त की कार्यवाही फैक्ट्री के चौखट तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देती है, किसी भी प्लांट में मजदूर आयुक्त का सही तरीके से निरिक्षण नहीं होता है | कागजी घोड़े से ही सारी दूरियाँ तय कर ली जाती है। विरोध में आवाज़ उठाने वाले मजदूर को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है|
हक़ की लड़ाई में दो वक़्त की रोटी भी छिन्न जाएगी
यहाँ कार्यरत कुछ मजदूरों ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि वे लोग यहाँ वर्षो से 12 घंटे कार्य करने को विवश है| सुबह 8 बजे से लेकर रात के 8 बजे तक कार्य करने के कारण जीवन बाहर की दुनिया से वंचित हो गया है। परिवार के बच्चे तक नहीं पहचानते है| अखबार और मीडिया में नाम आने से डरते हैं। कहते हैं कि आज आप मेरा नाम छाप दीजिये कल पक्का नौकरी चली जाएगी। इससे 12 घंटे की जिल्लत ही सही है।
तीन शिफ्ट की जगह दो शिफ्ट चलाने से कंपनियों को करोडों की होती है आमदनी
उद्योग क्षेत्र के जानकारों के अनुसार फैक्ट्री संचालक 3 की जगह 2 शिफ्ट में ही मजदूरों का खून चूस कर करोडों का आमदनी करते हैं | एक अनुमानित आंकड़े पर गौर करें तो स्थिति और भी स्पष्ट हो जाती है। एक मजदूर का वेतन 8 हजार रूपए के हिसाब से 500 मजदूरों को 4 करोड़ वेतन भुकतान करना पड़ता है, जिसे 3 शिफ्ट के हिसाब से किया जाये तो कंपनी को प्रतिमाह 12 करोड़ का भुगतान करना पड़ेगा किन्तु उसमे से अगर एक शिफ्ट निगल लिया जाये तो प्रतिमाह 4 करोड़ का अतिरिक्त लाभ| जिसके बाद 2 चार लाख की दान दक्षिणा और चढवा देकर बाबुओं की झोली भर दी जाती है| ऐसे में यहाँ की पृष्ट भूमि पर मजदूर अत्याचार की गाथा अनवरत जारी हैं और यह कितनी सरकारें बदलने के बाद बदलेगी यह बताना बहुत ही मुश्किल है।
पश्चिम बर्दवान जिले के शिल्पाञ्चल क्षेत्र में ऐसे कई फैक्ट्रियाँ है जहां मजदूरों का शोषण हो रहा । हमें जैसे – जसे आंकड़े मिलते जाएँगे हम पाठकों तक पहुंचाते जाएँगे