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केंदुआ हाई स्कुल की स्थिति दयनीय, शिक्षक कर रहे देश के भविष्य के साथ मजाक

स्कुल परिसर में गंदगी और घूमते आवारा जानवर

1952 में स्थापित हुई थी यह स्कूल

कुल्टी -सरकारी स्कूलों से अभिभावकों का मोह-भंग होने के कई कारण है और इसके कारण भी सरकार और सरकारी बाबू ही है. यूँ तो राज्य की मुख्यमंत्री राज्यभर में शिक्षा को लेकर काफी सक्रिय दिखती है. बच्चे स्कूल आये और उनका मन पढ़ाई में लगे इसे लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सबुज साथी और कन्याश्री जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाये लागू की है, जिसका व्यापक असर भी दिख रहा है. फिर भी ऐसी क्या कमी रह जा रही है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा और व्यवस्था का स्तर निम्न हो गया है. लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला कराने पर विचार तक नहीं करते है. ऐसी ही एक सरकारी स्कूल कुल्टी के केंदुआ बाजार स्थित केंदुआ हाई स्कूल है, जो आजादी के पाँच वर्ष बाद 1952 में स्थापित हुई थी, इस स्कूल से पढ़कर आज कई लोग विभिन्न क्षेत्रों में, देश व विदेशों में बेहतर प्रदर्शन कर चुके है.

परिसर के अंदर कचरों का अम्बर

लेकिन वर्तमान के कुछ वर्षों से स्कूल की स्थिति दयनीय होती चली गई और आज तो शायद आप इस स्कूल में जाना भी पसंद नहीं करेंगे. स्कूल परिसर के अंदर कचरों का अम्बर आपकी स्वागत करता दिखेगा और शायद कोई सुवर, कुत्ता या आवारा पशु आपको चोट भी पहुँचा जाए. स्कूल के क्लास रूम भी सड़क किनारे स्थित किसी ढाबे से कम नहीं लगती, बच्चों का शौचालय तो ऐसा है कि जैसे दशकों से इसकी साफ़-सफाई नहीं हुई है. ये सब देखकर शायद ही कोई माँ-बाप अपने बच्चे को इस स्कूल में दाखिला करवायेगा. लेकिन आर्थिक तंगी ने यहाँ के पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को मजबूर कर रखा है, क्योंकि वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते है, उनके पास उतने पैसे नहीं है.

शिक्षक बच्चों को पढ़ाते है या मजाक करते है

स्कूल के प्रधानाध्यापक नहीं है, महीनो से यह पद रिक्त पड़ा है. स्कूल के शिक्षक भी बच्चों को ऐसे पढ़ाते है मानो मजाक कर रहे हो, अधिकांश समय उनका गप्पें झाड़ने में या मोबाइल पर बीतता है और समय होते ही अपने घर चले आते है, मानो अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से इन्होंने पूरा कर लिया हो. बच्चे देश के भविष्य है, लेकिन इन शिक्षकों को इसकी कोई परवाह नहीं है. इन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार ने नियुक्त किया है और तनख्वाह भी उसी की मिलती है, लेकिन इन्हें कोई मतलब नहीं कि बच्चे पढ़ते है कि नहीं पढ़ते है. स्कूल के मुख्य द्वारा पर एक दरबान भी है, लेकिन वो किसी का परिचय जाने बगैर, किसी को भी अन्दर आने से रोकना अपनी ड्यूटी नहीं समझते है.

देश के भविष्य की अनदेखी

यह सिर्फ समस्या नहीं, समस्याओं का अम्बार है. जिसपर सम्बन्धित अधिकारियों ध्यान देना चाहिए साथ ही जनप्रतिनिधि भी इसपर अपनी दयादृष्टि दिखा सकते है, आखिर देश के भविष्य का सवाल है. छात्र नेता जीशान कुरैशी ने कहा कि केंदुआ हाई स्कूल की दशा काफी दयनीय हो गयी है, शिक्षा व्यवस्था के साथ ही स्कूल का परिवेश भी निम्न स्तर का हो गया है. इसे लेकर वे सम्बन्धित अधिकारियों को आवेदन करेंगे और बात नहीं बनी तो केन्द्रीय स्तर तक जाएँगे.

Last updated: जुलाई 24th, 2018 by News Desk