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झारखंड सरकार द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में खोरठा भाषा को शामिल करने के प्रस्ताव नहीं भेजे जाने से खोरठा भाषी नाराज

झारखंड की हेमंत सरकार द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में झारखंडी भाषाओं को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे जाने में खोरठा की उपेक्षा करने से खोरठा भाषी काफी नाराज़ हैं। सरकार ने राज्य की तीन भाषाओं मुंडारी, हो और कुड़ुख को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने के लिए विधिवत् प्रस्ताव भेजा है। खोरठा भाषा के साहित्यकार, संस्कृति कर्मी, खोरठा गीत संगीत सिनेमा से जुड़े कलाकार, खोरठा भाषी बुद्धिजीवी और खोरठा भाषा साहित्य के विभिन्न संगठन सरकार के इस पक्षपात पूर्ण फैसले का विरोध कर रहे हैं। इसे एक करोड़ खोरठा भाषियों के साथ अन्याय व विश्वासघात बताया जा रहा है। खोरठा भाषियों का कहना है कि तीन झारखंडी भाषाओं के लिए प्रस्ताव भेजना स्वागत योग्य कदम है। पर शेष मान्यता प्राप्त झारखंडी भाषाओं में से सबसे बड़े क्षेत्र की भाषा खोरठा को इस प्रस्ताव में शामिल नहीं किया जाना पक्षपातपूर्ण है और झारखंड की लगभग आधी आबादी के साथ अन्याय है।

इस संदर्भ में खोरठा भाषाविद् साहित्यकार दिनेश दिनमणि का कहना है कि सिर्फ जनजातीय भाषाएं ही आठवीं अनुसूची की शामिल होने की हकदार नहीं हैं। इस निर्णय में राज्य के सबसे बड़े क्षेत्र और सबसे बड़ी मूल आबादी की मातृभाषा खोरठा की उपेक्षा की गई है। सरकार इस पर पुनर्विचार करे। देश विदेश के शोधकर्ताओं द्वारा इसके भाषिक तत्त्वों पर गहन शोध किया जा रहा है। युगों से उपेक्षित इस लोक भाषा के विकास के लिए विशेष संरक्षण की जरूरत है।

खोरठा के मशहूर गीतकार, कवि,पटकथा लेखक व निर्देशक विनय तिवारी ने खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से अनुशंसा करने की मांग की,खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल होने से खोरठा गीत,संगीत,साहित्य व सिनेमा के विकास मार्ग प्रशस्त होगा। कहा कि झारखंड आंदोलन में खोरठा गीत,संगीत,व साहित्य का प्रबल भागीदारी रही है।

खोरठा के मशहूर अभिनेता अमन राठौर ने कहा कि खोरठा पूरे झारखंड राज्य की संपर्क भाषा है,खोरठा भाषा की यह विशेषता है कि यह सभी जाति ,धर्म व समुदाय के लोगों की भाषा है। झारखंड राज्य के गठन में खोरठा भाषियों का योगदान रहा है। यह 16 जिलों में प्रमुखता से बोली जाती है। खोरठा गीत,संगीत व सिनेमा ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का लोहा मनवाया है।

खोरठा भाषा के नवोदित साहित्यकार डॉ. आनन्द किशोर दांगी ने कहा कि 8वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है इस अनुसूची में खोरठा भाषा को यदि शामिल कर लिया जाता है तो खोरठा भाषा राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय भाषा पटल पर उभर कर सामने आ जाएगी।

मधुपुर के खोरठा साहित्यकार, खोरठा साहित्य संस्कृति विकास परिषद, देवघर के अध्यक्ष और खोरठा पत्रिका इंजोर के संपादक धनंजय प्रसाद ने सरकार के द्वारा खोरठा की अनदेखी को खोरठा भाषियों के लिए असहनीय बताया। उन्होंने कहा कि राज्य के तीन-चार प्रमंडलों के 70 प्रतिशत मूल निवासियों की मातृभाषा खोरठा है, इसकी उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सरकार खोरठा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करे।

खोरठा साहित्यकार गिरिधारी गोस्वामी आकाशखूंटी ने सरकार के खोरठा के उपेक्षापूर्ण व्यवहार को अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि खोरठा आठवीं अनुसूची की सूची में शामिल होने की सारी शर्तें पूरी करती है। देश की कई ऐसी भाषाएं आठवीं अनुसूची में शामिल हैं जो खोरठा की तुलना में काफी छोटे क्षेत्र और छोटी आबादी के बीच बोली जाती है।

खोरठा संस्कृति कर्मी विनोद कुमार रसलीन, खोरठा शोधार्थी अनाम ओहदार ,खोरठा कर्मी विक्की कुमार ने भी खोरठा की अनदेखी को दुःखद बताया है और खोरठा को उसका हक़ दिलाने की मांग की है। खोरठा साहित्यकार कलाकार सुकुमार ने खोरठा की अनदेखी को झारखंड के मूल निवासियों की अनदेखी बताया। खोरठा के साहित्यकार महेंद्र नाथ गोस्वामी ने कहा कि झारखंड की मूल आबादी में साठ प्रतिशत खोरठा भाषियों की उपेक्षा आश्चर्यजनक है।

Last updated: अगस्त 27th, 2020 by Ram Jha