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125 वर्षों से अधिक समय से स्थापित काली मंदिर लोगों के लिए विशेष आस्था का केंद्र

लोयाबाद। लोयाबाद 3 नंबर स्थित 125 वर्षों से अधिक समय से स्थापित काली मंदिर लोगों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है। यूं तो हर रोज माँ काली की सुबह शाम पूजा की जाती है लेकिन काली पूजा में विशेष रूप से पूरी विधि विधान के साथ माँ काली की पूजा की जाती है और दर्जनों बकरों की बलि दी जाती है।पूजा के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ इस मंदिर में होती है वहीं काली पूजा को लेकर मंदिर से जुड़े हुए लोग काली पूजा की तैयारियों में जुट गए हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी अमल कृष्ण भट्टाचार्य सहित क्षेत्र के बड़े बुर्जुगो कि माने तो यह मंदिर 125 वर्षों से भी अधिक समय का है।

मंदिर से लोगों को विशेष आस्था

इस मंदिर से लोगों का विशेष आस्था जुड़ी हुई है।मां काली अपने भक्तों के मांगी हुई हर मुराद को एक चमत्कार की तरह करती हैं।इस मंदिर में भक्तों द्वारा मांगी गई कोई मुराद आज तक खाली नहीं गया है।इसीलिए बड़ी दूर-दूर से लोग इस मंदिर आते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए माँ से विनती करते हैं और जब भक्तों की मांगी हुई मुराद पूरी हो जाती है तो भक्त मंदिर पहुँच कर माँ का पूजन करते हैं । वहीं आसपास के लोगों का कहना है कि इस मंदिर में विशेष शक्ति है। केवल माँ के मंदिर में माथा टेक लेने मात्र से ही कोई भी अशुभ कार्य शुभ कार्य में बदल जाता है।

श्मशान काली के रूप में है विख्यात

लोयाबाद की काली माँ श्मसान काली के नाम से विख्यात है। कहते है कि आज से 50 से 60 वर्ष पूर्व वहाँ चिताएं जलती थी। शाम ढलने के बाद वहाँ जाने से लोग कतराते थे।हालांकि लोयाबाद कोलियरी की श्मसान काली की पूजा तथा उसकी स्थापना कब और किसने की यह अबतक स्पष्ट नहीं हो पाया है।परंतु जानकारों का मानना है कि सर्व प्रथम काली पूजा श्मशान में रहने वाले लोग ही किया करते थे। यहाँ दूर दूर से साधक आकर अपनी साधना सिद्धि हासिल करते थे।चर्चा है कि आज भी अमवस्या की रात को कई साधक चोरी छुपे यहाँ आकर साधना की सिद्धि करते है।

कोयला श्रमिकों की आराध्य देवी है माँ काली

काल रात्रि अर्थात कार्तिक मांस की अमावस्या को माँ काली की आराधना कई दशकों से लोयाबाद के विभिन्न कोलियरी क्षेत्रों में होती आ रही है।कोयला श्रमिकों कि लिए माँ काली आराध्य देवी है।कोल कर्मी बड़ी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूजा अर्चना करते हैं।वही भूमिगत खदानों में काम करने वाले श्रमिक खदानों में जाने से पहले अपनी रक्षा व खुशहाली के लिए रक्षा काली की पूजा अर्चना करते हैं। यही वजह है कि विभिन्न कोलियरी के कोयला खानों के मुहानों पर हर दिन माँ रक्षा काली का गुणगान गाया जाता था।हजारों फिट गहरी भूमिगत खदानों में उतरने से पूर्व श्रमिक माँ रक्षा काली की आराधना करना नहीं भूलते है।

Last updated: नवम्बर 13th, 2020 by Pappu Ahmad