जीत महान माँ अपने भक्तों को स्वयं संज्ञान में लेकर कल्याण करती हैँ और उनकी कृपा सदा ही जिउतीया पर्व करने वाली माताएँ पर विधमान रहती हैँ ऐसी मान्यता हैँ कि माँ के द्वारा किया गया यह पर्व सदैव ही उनके पुत्रों के लिए कर्म फल देने वाला व्रत हैँ संतान कल्याण का का यह पर्व जितिया आज नहाय खाय के साथ शुरू हुआ,छठ व्रत की तरह जितिया व्रत में भी नहाय-खाय की ही परम्परा मुख्य रूप से होती हैँ इसमें व्रती सुबह उठकर पवित्र नदी में स्नान करती है।अगर नदी स्नान संभव न हो तो आप घर पर भी पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद पूजा-पाठ किया जाता है और फिर भोजन किया जाता है।
आज नहाय-खाय में व्रती माताएं झिंगली,सतपुतिया, नोनी का साग और मड़ुआ की रोटी खाती हैँ वहीं, जबकि रात्रि में सरगही की भी परम्परा हैँ जिसमें की माताएँ मुख्य रूप से फल्हार करती हैँ और तत्पश्चात पानी का एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैँ इस व्रत को खर जिउतिया पर्व बोलकर भी सम्बोधित किया जाता हैँ क्योंकि इस पर्व में माताएँ बिलकुल ही बिना जल के उपवास करती हैँ और ऐसी मान्यता हैँ कि माँ के द्वारा की गई इस निर्जला व्रत से उनकी संतान दीर्घायु होती हैँ ऐसी जीत्महन माँ को कोटि कोटि नमन,
संवाददाता चेतनारायण कुमार