झारखण्ड के युवाओं की एक ही माँग रोजगार, रोजगार और केवल रोजगार,,,,, जावेद अख्तर राँची
मेरी बात,,,,झारखंड के युवाओं की एक ही मांग, रोजगार, रोजगार और केवल रोजगार….., जावेद अख्तर, रांची
आज लगभग झारखंड गठन के 22 वर्ष पूरे हो चुके हैं।जबकि इन 22 वर्षों में इस राज्य ने 9 राज्यपाल, 11 मुख्यमंत्री और 3 बार राष्ट्रपति शासन देखा। तत्पश्चात राज्य का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया जितना इसका होना था ।सरकार चाहे जिस पार्टी की भी रहे सत्ता और सिस्टम में बैठे लोग मलाई मारते रहे वहीँ अगर सबसे ज्यादा उपेक्षित कोई है तो बेशक वह नौकरी की आस में बैठी झारखण्ड की अपनी बेरोजगार युवा पीढ़ी है। 15 नवंबर 2022 को राज्य बहुत धूमधाम से राज्य गठन का 22वां वर्षगांठ मना रहा है। प्रत्येक सरकार की भांति आज की वर्तमान सरकार भी अपनी उपलब्धियाँ गिनाने के लिए ललायित है।वहीँ निश्चित तौर पर हेमंत सोरेन की सरकार ने 3 वर्षों में कुछ ऐसे कार्य किये हैं जिसका श्रेय इस सरकार को जाता है। जैसे- पुरानी पेंशन स्कीम को पुनः बहाल करना, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के मानदेय में वृद्धि, पारा शिक्षकों के मानदेय में वृद्धि, पुलिसकर्मियों को साल में 13 महीने का वेतन, सहायक पुलिसकर्मियों को सेवा विस्तार देना इत्यादि कुछ ऐसे कार्य हैं, जिससे राज्य में कार्यरत सरकारी कर्मचारी उत्साहित हैं। इस सरकार का ऐतेहासिक फैसला 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति और नौकरी में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की सीमा को 14% से बढ़ाकर 27% करने संबंधित विधेयक का 11 नवंबर 2022 को विधानसभा के विशेष सत्र में पारित होना है।इसकी मांग राज्य की जनता पिछले दो दशकों से करते आ रही थी।वहीं दूसरी तरफ राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे के विकास के मामले में फिसड्डी है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की साक्षरता दर मात्र 66.40% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 74% है। झारखंड के साथ अस्तित्व में आये दो अन्य राज्य छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड की तुलना झारखंड से की जाए तो आंकड़े शर्मशार करने वाली है। एक तरफ जहाँ, छत्तीसगढ़ में साक्षरता दर 70.28%, उत्तराखंड में 78.82% है वहीं दूसरी तरफ 66.40% साक्षरता दर के साथ झारखंड पूरे देश में 31वें पायदान पर खड़ा है।स्वास्थ्य सुविधा के मामले में स्तिथि बद से बदतर है। झारखंड में चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या मात्र 9 है। लेकिन छत्तीसगढ़ में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 12 है। मात्र 1.01 करोड़ की जनसंख्या वाले उत्तराखंड में भी 8 मेडिकल कॉलेज हैं। जबकि यहां की जनसंख्या झारखंड की तुलना में 3 गुणा से भी कम है।जहाँ तक रोजगार का सवाल है तो यह बात जगजाहिर है कि यहाँ के लाखों लोग महानगरों एवं अन्य विकसित राज्यों में मजदूरी करने के लिए विवश हैं। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों का हृदयस्पर्शी पीड़ा उभर कर सामने आई थी। यहां के शिक्षित युवा बदहाली में अपने दिन गुजार रहे हैं। सरकार द्वारा घोषित नियुक्ति वर्ष 2021 यूं ही निकल गया। 2022 भी प्रतियोगी छात्रों के लिए सामान्य ही रहा। यहां तक की पहले से प्रक्रियाधीन कुछ नियुक्तियां जैसे- कारा वाहन चालक, उत्पाद सिपाही, विशेष शाखा आरक्षी प्रतियोगिता परीक्षाओं को रद्द कर दिया गया है। हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला साढ़े तीन महीना पहले आया है लेकिन अब तक यह नियुक्ति भी पूरी नहीं हो सकी है। पंचायत सचिव प्रतियोगिता परीक्षा का अंतिम परीक्षाफल भी लंबित है। हाल ही में संपन्न हुए 7वीं-10वीं जे.पी.एस.सी. सिविल सेवा परीक्षा भी विवादों में रहा। छह माह गुजर गए लेकिन अबतक अभ्यथियों का कटऑफ मार्क्स जारी नहीं किया गया। जे. एस. एस. सी. द्वारा पिछले एक वर्ष में एक दर्जन से अधिक परीक्षाओं का फॉर्म भरवाया गया है लेकिन एक भी परीक्षा कंडक्ट नहीं हो पाया। यहां तक कि जे.ई. परीक्षा का आयोजन हुआ लेकिन इसमें प्रश्नपत्र लीक होने का मामला सामने आ गया। छात्र टूट चुके हैं।हालांकि एजेंसी बदलते हुए इस एग्जाम को कम्पलीट करा लिया गया है।जबकि गौर करनी वाली बात यह है कि झारखण्ड के युवा स्वर्णिम भविष्य का सपना संजोए यहां के योग्य छात्रों को न्याय कैसे मिलेगा जबकि आज के युवा ही कल के भविष्य हैं। रोजगार के मुद्दे पर सरकार को संवेनशील रुख अख्तियार करने की जरूरत है। यकीन मानिए ये काबिल युवा राज्य के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए आतुर हैं।
रांची से,,,,जावेद अख्तर
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