नया आगाज़ होता हैं
हम यूं ही नहीं सरहुल पर्व मनाते हैं,यह त्यौहार प्राकृतिक बदलाव से आते हैं।सरहुल शब्द का अर्थ
सरहुल दो शब्दों से बना है- सर और हूल सर मतलब सरई या सखुआ का फूल और हूल अर्थात क्रांति इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया हैँ मुंडारी, संथाली और हो-भाषा में सरहुल को ‘बा’ या ‘बाहा पोरोब’, खड़िया में ‘जांकोर’, कुड़ुख में ‘खद्दी’ या ‘खेखेल बेंजा’, नागपुरी, पंचपरगनिया और कुड़माली भाषा में इस परब को ‘सरहुल’ कहा जाता है। यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है।सरहुल पर्व मनाने की सरहुल त्योहार प्रकृति को समर्पित है। इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। आदिवासियों का मानना है कि, इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है। मुख्यतः यह फूलों का त्यौहार है पतझड़ ऋतु के कारण इस मौसम में ‘पेंडों की टहनियों’ पर ‘नए-नए पत्ते’ एवं ‘फूल’ खिलते हैं। इस पर्व में ‘साल‘ के पेड़ों पर खिलने वाला ‘फूलों‘ का विशेष महत्व है।
सरहुल एक मात्र पर्व-त्योहार ही नहीं, झारखंड के गौरवशाली प्रकृति के धरोहर का नाम भी है सरहुल। प्रकृति के बगैर हम मानव जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं और प्रकृति को कोई सम़झा ,तो वह”आदिवासी जनजाति समाज है’। जो शुरू से अभी तक प्रकृति के साथ अपने परंपरा, वेशभूषा और पहचान क़ो बनाये रखा है और भारतीय संस्कृति में अपने आपको स्थापित किया।प्रकृति के प्रति प्रेम एवं शांति, हरियाली और खुशहाली का पर्व सरहुल पर्व झारखण्डी संस्कृति की पहचान है यह महापर्व हमें यह सीख देता है कि मानव प्रकृति का हिस्सा है। तथा प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं।इस पावन अवसर पर जल, जंगल एवं ज़मीन तथा झारखण्डी भाषा, संस्कृति की रक्षा का संकल्प करें
प्राकृतिक पर्व सरहुल पूजा के शुभ अवसर पर आप सभी पाठकों को हमारे,,मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क की ऒर से ढेर सारी बधाई हो
झरिया,सरहुल पर्व एक प्राकृतिक पर्व हैँ और इसे सब मिलजुलकर एकसाथ मनाए,, लखीदेवी पासवान

Last updated: मार्च 24th, 2023 by