झरिया,जामाडोबा के इस रेलवे फाटक को आज भी हैँ अपने रहनुमा का इंतजार और आम जनता को हैँ फ्लाईओवर का इंतजार
Arun Kumar
झरिया, मुद्दा क्यों जामाडोबा का यह रेलवे पुल राजीनीति का भेंट चढ़ा अगर यह कहा जाए तो कही से भी यह गलत नहीं होगा चुकि आज इस रास्ते से सफर करने वाले लोग खुद ही अपनी बदकिस्मती का रोना जो रो रहे हैँ प्रतिदिन की तरह यह भागा का रेलवे साइडिंग और यहाँ से गुजरने वाली ट्रैन व मालगाड़ी लोगों के लिए आज भी किसी मुशीबत से कम नहीं हैँ जबकि ज्ञात हो कि 18 महीने बंद रहने के बाद भी यह रेलवे फाटक फ्लाईओवर का रूप नहीं ले पाया इसीलिए मैं किया जनता भी सवाल कर रही हैँ कि किया यह फ्लाईओवर नहीं बन जाना चाहिए था जबकि झरिया क्षेत्र में यह पहला फ्लाईओवर होता किन्तु राजनीती की भेंट चढ़ जाने के कारण यह फ्लाईओवर का निर्माण ठन्डे वस्ते में चला गया उसवक्त कई राजनेता इस फ्लाईओवर के बनाये जाने को लेकर काफी उत्सुक थे तो कई राजनेता अपनी राजनीती चमकाने में ही मशगूल थे तभी तो आज भी जनता जनार्दन पीस रही हैँ और जवाब मांग रही हैँ कि कौन हैँ जिम्मेवार और कौन लेगा जिम्मेदारी जबकि सभी लोग अपने काम में व्यस्त हो चले हैँ और जनता आज भी रेलवे ट्रैन के भरोसे में रुक रुक कर अपने आवागमन को जारी रक्खे हुए हैँ मेरे हिसाब से जनता का भला तो तब होता ज़ब यह रेलवे का फ्लाईओवर बन गया होता जबकि पुरानी स्तिथि को ही बहाल कर दी गई हैँ खैर जो जनता के मुद्दे हैँ वो तो रहेंगे ही बाकी जनता की परेशानी को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता हैँ