रानीगंज ।मणिपाल अस्पताल कोलकाता की ओर से कंटिन्युईंग मेडिकल एज्युकेशन (सीएमई) पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के सहयोग से रानीगंज के जलान रेसीडेंसी सभागार में चिकित्सा सेमिनार का आयोजन किया गया । सीएमई का विषय लिगामेंट में जख्म एवं उपाचार। इस चर्चासत्र में लिगामेंट में जख्म के बाद उसका व्यवस्थापन तथा पुर्नवर्सन प्रक्रिया के बारें में चर्चा की गई।
इन में इस अंचल के चिकित्सा कौन है ऐसा लिए। मणिपाल अस्पताल्स , कोलकाता के कन्सल्टेंट ऑर्थोपेडिक सर्जरी डॉ. अभिषेक दास ने कहा लिगामेंट में जख्म जैसे महत्त्वूर्ण विषय पर लोगों में लिगामेंट में होनेंवाले जख्म के बारें में तथा उसे ठीक करनें का महत्त्व समझाने की जरूरत हैअगर लिगामेंट में छोटासा जख्म होता है और उसे समय पर ठीक ना किया जाए तो भविष्य में इस से बड़ी समस्या निर्माण हो सकती है। साधारण तौर पर कांधों में तथा घुटनों में होनेंवाले पुराने दर्द का कारण लिगामेंट और कारटिलेज में खराबी होती है जिस पर बहुआयामी उपचारों की जरूरत होती है।
ऐसी जख्मों में अगर अधिक समय तक दर्द जारी रहता है तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना जरूर ी होता है। जख्म की ठीक से जाँच करने से जटीलता कम होकर व्यक्ती किसी भी साईड इफेंक्ट के बिना तंदुरूस्त होता है। इस कैम्प का उद्देश्य यह था कि लोगों में लिगामेंट में होनेवाले जख्म के बारें में योग्य जानकारी दी जा सकें।
लिगामेंट में जख्म होना आजकल सामान्य बात होती है और इस पर नियमित रूप से व्यायाम करनें की सलाह दी जाती है। यह समझना जरूरी है कि लिगामेंट में जख्म केवल खिलाडीयों में ही नहीं होती बल्की साधारण व्यक्ती को भी यह जख्म हो सकते है।. इसलिए यह जरूर ी बात है कि हमें खुद को तैय्यार रहतें हुए इस प्रकार के जख्म से होनेंवाले दर्द और काम पर असर होने से बचना चाहिए। लिगामेंट की योग्य जाँच करना आवश्यक होने के साथ ही डॉक्टर की तुरंत सलाह लेना भी आवश्यक है। अगर किसी के लिगामेंट में छोटी जख्म होती है तो उस पर आइस थेरपी, आराम करना और डॉक्टरों की सलाह से योग्य दवाईयों की मदद से उसे ठीक किया जा सकता है।
लिगामेंट के दर्द का व्यवस्थापन तथा समय पर उपचार लेनें पर कई आशंकाएं है. डॉ.दास ने लिगामेंट में जख्म के बारें में अपने विचार साझा किए।. प्रश्नों के उत्तर देतें हुए उन्होंने कहा “ अधिकर जख्म योग्य व्यवस्थापन और दवाईयों के सहयोग से ठीक हो जाती है. जख्म ठीक होने के बाद यह महत्त्वपूर्ण होता है की वह अवयव पहलें जैसे और उतनीं ही शक्ति से काम कर सकें। कुछ ही लोगों में अगर दवाईयों और अन्य पर्यायों का प्रयोग विफल होता है तो घुटनें और कंधों पर मिनीमली इन्वेज़िव की हॉल सर्जरी की सहायता से जल्द सुधार होकर मरीज अपना सामान्य जीवन मैं लौट आता है।