Site icon Monday Morning News Network

लॉकडाउन में अपने जीवन का निर्वहन बहुत ही मुश्किल तरीके से कर रहे हैं गोलगप्पें वाले और उनके जैसे लाखों रेड़ी वाले

नहीं साहब अब बर्दाश्त नहीं होता, भूखे मरने की नौबत आ गई है। धंधा का नाश हो गया सर पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन यह महामारी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। एक तरफ लॉकडाउन दूसरी तरफ मंहगाई और तीसरी तरफ मानव से मानव का दूर होना, हमारे धंधे को चौपट कर दिया है । कुछ इसी तरह का वाक्य खेदु चौधरी जैसे गोलगप्पें विक्रेताओं की थी जो इस लॉकडाउन में अपने जीवन को निर्वहन बहुत ही मुश्किल तरीके से कर रहे हैं।

गंगा घाट के किनारे अपने ग्राहकों के इंतजार आशान्वित आँखों से कर रहे गोलगप्पें ग्राहकों की थी। अपने मार्मिक दशा को बयान करते खेदू चौधरी अपनी परिस्थितियों का बयान कुछ इसी तरह कर रहे है। उनसे बात करने पर वो कहते है कि लॉकडाउन से पहले इस गंगा घाट पर सुबह से शाम 1000 लोगों का जमावड़ा रोज रहता था, जिससे हम कुछ रोजगार कर लेते थे , लेकिन अब तो ऐसी दशा है कि 100 रुपए का रोजगार करना मुश्किल है। लोग इस छुआ छूत की डर से गोलगप्पें खाने से डरते हैं। दूसरी तरफ आलू का दाम आकाश छू रहा है। ऐसे में यह धंधा करना बहुत मुश्किल है। अब इस उम्र में दूसरा धंधा भी नहीं कर सकता। समझ में नहीं आ रहा क्या करू। ऐसा ही कुछ दिन और रहा तो हमारे पास मरने के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं बचेगा।

Last updated: सितम्बर 19th, 2020 by Subhash Kumar Singh