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इम्पेक्स पावर प्लांट बंद होने से 70 प्रतिशत काम हुआ प्रदूषण, कुछ फैक्ट्रियाँ रात को हवा में घोल रही है, ज़हर

कल्याणेश्वरी। कल्याणेश्वरी से लेकर देन्दुवा तक फैली उद्द्योग की विशाल श्रीखला यू तो यहाँ के विकास की कर्णधार कहलाती है। किंतु ये विकास की वस्तु अब यहाँ की वायु में विनाश की जहर घोल रही है।

दिन की आपाधापी में तो शायद ही कभी आप इनके चिमनियों से प्रदूषण देख पाएंगे किन्तु रात होते ही इनकी भट्ठी और चिमनी विकराल रूप धारण कर लेती है। और फिर शुरू होती है, यहाँ की शुद्ध वायु में विशुद्धप्रदूषणफैलाने की।

रात के 9 बजते ही आप यहाँ की सड़कों पर आँखें खोल कर नहीं चल सकते आज इसी समस्या को लेकर इन औद्योगिक क्षेत्र के आस-पास के दर्जनों गाँव की निवासीप्रदूषणकी चपेट में जीवन जीने को विवश है। कुछ प्लांट की तानाशाही दिन में भी कायम रहती है। जिसे आप यहाँ के पेड़ पौधों को देखकर लगा सकते है क्योंकि पत्तों पर बिछेप्रदूषणकी परत से सभी प्रजाति के पेड़ पौधे एक सामान प्रतीत होती है। हालांकि स्थानीय लोगों की माने तो पूरणडीह गाँव के आदिवासियों के आंदोलन के कारण पिछले तीन दिनों से इम्पेक्स पावर प्लांट बंद होने से क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत प्रदूषण कम हुआ है, जिससे क्षेत्र के लोगों में खुशी देखी जा रही है, प्लांट प्रबंधन पावर प्लांट को चालू करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है, किन्तु आदिवासियों की अटल जिद्द के आगे सब बेकार साबित हो रही है।

जानकार सूत्रों की माने तो क्षेत्र के स्टील, फेरो अलॉयस, सीमेंट आदि प्लांटों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए (सीएसपी) अति आधुनिक उपकरण उपयोग करने से प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है। किंतु उद्योगपति इसे अतिरिक्त खर्च का बोझ समझ नजर इसे अंदाज कर देते है। और इस पूरे प्रकरण में इन उद्योगपतियों को राजनीतिक से लेकर प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। जिस कारण आम जनता की उठने वाली आवाज़ को कुचल दिया जाता है, कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि यहाँ के प्लांटों में कार्यरत लगभग सभी मज़दूर और कर्मी बाहरी है। स्थानीय को रोजगार नहीं किन्तु प्रदूषण मुफ्त में खानी पड़ती है।

यहाँ की ध्वनिप्रदूषणभी आप रात को 1 किलोमीटर की दूरी पर सहन नहीं कर पाएंगे। इसमें मुख्य रूप से दो प्लांट का नाम सबसे पहले है।इम्पेक्सफेरोटेक एंड पावर लिमिटेड तथा बीएम्ए स्टील इनके प्लांट से निकलने वाली ध्वनिप्रदूषणसे स्थानीय लोगों की जीवन को बद्द से बद्तर बना दिया है।


कॉर्पोरेट सोशल रिस्पोन्सब्लिटी(सीएसआर) के नाम पर ठेंगा

मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स द्वारा निर्धारित सीएसआर नियम के तहत आस-पास के गाँव की विकास सहित अन्य सोशल कार्य की जिम्मेवारी यहाँ कागजों तक ही सिमित रह जाती है। और उस पैसे का बड़ा हिस्सा नेता और प्रशासनिक अधिकारी डकार लेते है। इस क्रम में उद्योगपतियों को भी लाभ प्राप्त होती है। खानापूर्ति के नाम पर सीएसआर की मनगढंत कागज़ पर चार्टर्ड अकाउंटेन्ट की मुहर लगा दी जाती है।

प्रदूषण से मिटटी जा रही है जोड़िया का अस्तित्व

कल्याणेश्वरी अधोगिक क्षेत्र से होकर माँ कल्याणेश्वरी मंदिर होते हुये गुजरने वाली जोड़िया अब गंदी बड़ी नाली के रूप में तब्दील हो चुकी है, एक और स्वच्छ भारत का उपदेश देने वाले नेताओं का जहाँ मुँह नहीं थकती, दूसरी ओर इस जोड़िया में लगभग सभी फैक्ट्रियों का दूषित जल और मल प्रवाहित किया जाता है, इतना ही नहीं इम्पेक्स का छाई यार्ड का छाई भी बह कर जोड़िया में जा रही है, आगे जाकर यही जोड़िया कल्याणेश्वरी मंदिर होकर बहती हुई बराकर नदी में मिल जाति है। किंतु मंदिर में आने वाले श्रद्धालु आज भी जोड़िया के दूषित जल से अभिषेक करने को विवश है, हालाँकि मंदिर के पुजारियों ने इस संबंध में कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराया है। साथ ही प्लांट के दूषित जल को जोड़िया में प्रवाहित नहीं करने की फरियाद की है, ऐसे में रिश्वत की नोट के आगे सच्चाई कीप्रदूषणभी अब यहाँ के हुक्मरानों को जन्नत की हवा लगने लगी है।

Last updated: मई 29th, 2021 by Guljar Khan