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रमजान में निकाला जाने वाला फितरा व जकात की रकम से गरीबों की मदद करें

लोयाबाद अल्लाह-त-आला ने माहे रमजान में मुकद्दस किताब कुरान शरीफ को नाजिल कर मुसलमानों को जिंदगी जीने का तरीका बताया। किन कामों को करना चाहिए और किन कामों से बचना चाहिए कुरान की आयतें करीमा बयाँ कर रही हैं।

इस बार प्रत्येक व्यक्ति 50 रुपये फितरा निकालना तय पाया गया है

इस्लाम धर्म में जकात (दान)और ईद पर दिया जाने वाला फितरा का खास महत्त्व है। माहे रमजान में इनको अदा करने का महत्त्व और बढ़ जाता है। क्योंकि इस महीने में हर नेकी का अल्लाह तआला सत्तर गुना अता करता है। यह हर मुसलमान पर फर्ज है जो साहिबे निसाब है (जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी की हैसियत हो) । देश में लाॅकडाउन लगा हुआ है। लोगों का काम धंधा बंद हो गया है। इसलिए फितरा और जकात की रकम से गरीब परिवारों व मदरसों को मदद करें ।मदरसे में गरीब यतीम मिस्कीन बच्चे पढ़ते हैं। इस बार प्रत्येक व्यक्ति 50 रुपये फितरा निकालना तय पाया गया है।

साल भर की कमाई पर शुद्ध लाभ का ढाई प्रतिशत जकात के रूप में देना फर्ज है

यह बातें लोयाबाद पावर हाउस मस्जिद के इमाम मौलाना अबुल कलाम खान रिजवी ने कही। उन्होंने कहा कि अल्लाह रब्बुल इज्जत ने कुरान में फरमाया कि साल भर की कमाई का ढाई प्रतिशत जकात के रूप में मिस्कीनों को देना हर साहिबे निसाब मुसलमान पर फर्ज है। नबी करीम फरमाते हैं कि ईद की नमाज अदा करने से पहले फितरा देना वाजिब है। अगर कोई इसको अदा नहीं करता तो उसके रोजे आसमान और जमीन के दरम्यान मुअल्क (लटकता) रहता है। साल भर की कमाई पर शुद्ध लाभ का ढाई प्रतिशत जकात के रूप में देना फर्ज है। यह केवल मिस्कीनों, ऐसे मुसाफिरों को जिनके पास कुछ नहीं बचा उसी को देना चाहिए। वहीं फितरा घर के प्रत्येक सदस्य पर पौने तीन किलो गेहूँ या इसके बराबर की कीमत देना वाजिब है।

रिवायत का जिक्र करते हुए मौलाना कलाम ने बताया कि हजरत उमर फारूख रजीअल्लाह तआला अनुह फरमाते हैं कि वो माल सूखे और पानी में बरबाद नहीं हो सकता जिसका जकात निकाला जा चुका हो।

Last updated: मई 6th, 2020 by Pappu Ahmad