भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है. अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ समाप्त होती रही है, किंतु भारत की संस्कृति आदिकाल से ही अपने परमपरागत अस्तित्व के साथ अजर अमर बनी हुई है. खुट्टाडीह कोलियरी के सुक बाजार में बी टाइप के पास हनुमन्त महायज्ञ कराने के उद्देश्य से पहुँचे सन्त सीतारामदास जी महाराज ने उक्त विचार प्रकट किया.
उन्होंने कहा कि यज्ञ पूजा अर्चन भारतीय संस्कृति की जननी है और तप तपस्या के बल पर ऋषि मुनियों ने सिद्दी प्राप्त की. जो प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति में उल्लेख मिलता है. उसका उपयोग हमारे वैज्ञानिक कर रहे है.
17 जनवरी से 25 जनवरी तक नौ दिवसीय हनुमन्त महायज्ञ कराने की तैयारी में जुटे बाबा ने कहा कि कोयलाञ्चल के खदानों में प्रकृति के खिलाफ जान जोखिम में डालकर कार्य करने वाले कोल कर्मियों की सुरक्षा और भविष्य उज्ववल की कामना के साथ हनुमन्त महायज्ञ में खुट्टाडीह कोलियरी खुट्टाडीह ओसीपी कर्मियों की सहयोग के साथ आसपास के लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है.
बाबा ने कहा कि भारतीय संस्कृति की उदारता तथा समन्यवादी गुणों ने अन्य संस्कृतियों को समाहित तो किया है, किंतु अपने असितत्व के मूल को सुरक्षित रखा है. तभी तो पश्चयात देश के विद्धान भी अपने देश की संस्कृति को समझने हेतु भारतीय संस्कृति को पहले समझने की परामर्श देते है और आज हमलोगों को अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व है.