रानीगंज। पर्यावरण पृथ्वी का एक अभिन्न अंग है, प्राचीन काल में मानव अपने चारों ओर के वातावरण को काफी स्वच्छ और सहेज कर रखता था, वह अपना ज्यादातर समय वातावरण को स्वच्छ रखने में ही देता था। प्राचीन काल में मानव पर्यावरण के महत्त्व को काफी अच्छी तरह से समझता था वह जानता था कि अगर पर्यावरण स्वच्छ है तो हम भी स्वच्छ रह सकेंगे। पर्यावरण न केवल जलवायु को संतुलित बनाए रखता है बल्कि जीवन के लिए जो कुछ भी आवश्यक है वो सभी चीजे हमें पर्यावरण द्वारा ही प्राप्त होती है। लेकिन आज के समय में मानव भूलता जा रहा है । जिसका सीधा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। जिसका जीता जागता एक उदाहरण है पर्यावरण में ऑक्सीजन की कमी। जिसे हम झेल रहे हैं ।
प्राचीन काल में मनुष्य को प्रकृति द्वारा पूर्ण रूप से पौष्टिक सब्जियां, फल आदि प्राप्त होती थी और उसके सेवन से ही वह पूरे दिन ऊर्जा से भरे रहते थे । पूरी उम्र कोई बीमारी नहीं होती थी लेकिन आज के समय में मनुष्य प्राचीन काल जैसी सब्जियाँ प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार की दवाईयों और कीटनाशकों लेता है जिसका सीधा प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर पड़ता है ।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पूरे विश्व में पर्यावरण के प्रति जागरूकता अभियान विभिन्न रूप में चलाई जाती रही है । इसी कड़ी में एक युवक बसरा ग्राम के प्रबीर मंडल नयाब तरीके से पर्यावरण के प्रति जागरूकता के साथ-साथ वास्तविक जीवन में उपयोग आने वाली धन संपदा को बचाए रखना एवं बंजर जमीन पर विभिन्न रूप के फल फूल सब्जी का पौधा लगाकर इलाके के लोगों को जागरूक कर रहे हैं। रानीगंज शहर से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर कोने पर बसरा ग्राम है। एक तरफ कोयला खदान तो दूसरी तरफ आदिवासियों का घना गाँव। उसी बीच में इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड के कनुस्टोरिया एरिया के साधारण कर्मी प्रवीण कुमार मंडल ने अपने पारिवारिक बंजर जमीन पर बागान बगीचा लगाकर हैरत भरे काम को कर रहे हैं। दुर्लभ प्रजाति के पौधे जैसे चंदन, क्रिसमस ,देवदार का पौधा लगा रखे हैं। दैनिक जीवन में उपयोगी फल सब्जी के साथ-साथ नाना रकम के फूल पौधे लगा रखे हैं। इतना ही नहीं पौधों के संरक्षण के लिए छायादार छावनी तैयार कर लगा रखे हैं। अपने कविता और संगीत को नए आयाम देने के लिए काफी सुंदर प्रकृति की गोद में मानो झोपड़ी बना रखे हैं। प्रवीर कुमार कहते हैं कि पिछलेे वर्ष कोरोना महामारी के दरमियान लॉकडाउन कर दी गई थी। लॉॉकडउन ना पहले कभी न देखा था। विचलित मन को संतुलित करने के लिए मैंने अपने पिताजी के छोटे से बगिया को सजाने संवारने लगा और आज मेरे जीवन का अंग बन गई है। पिता के देहांत के बाद प्रवीर कुमार ने अपने पिता के याद में इस स्थान पर एक पौधा लगाया और वह पौधा आम का था काफी संख्या में उसमें आम फला। उसे देख कर मेरे मन में विचार आया , उस पौधे से प्रेरणा लिए ।
अपने पिता के यादों के साथ-साथ एक के बाद एक पौधे लगाना शुरू किया। उन्होंने एक सुंदर कविता की पंक्ति “कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता तबीयत से एक पत्थर तो उछाल लो यारों ”उनका मानना है कि जैविक पद्धति से यह सब कुछ संभव है आज ईसीएल के क्षेत्र में अनेकों ओसीपी के वजह से जमीन बंजर पड़ी हुई है । यदि इस दिशा में सरकार यदि ईमानदारी पूर्वक ध्यान दें तो मैं मानता हूँ की पूरा रानीगंज कोयलाञ्चल में हरी क्रांति आ जाएगी क्योंकि ओसीपी की वजह से अनेकों बड़े बड़े तालाब हैं। जल संरक्षण की जा सकती है। मछली पालन की जा सकती है ।इसके साथ-साथ मुर्गी एवं हंस जैसे पंछियों का पालन की जा सकती है। और वर्तमान में जो ऑक्सीजन की कमी पर्यावरण में देखी गई ऐसी स्थिति नहीं बनती मैं अपने संदेश में इतना ही कहना चाहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति चाहे जहाँ भी हो घर के गमला में हो या फिर आगन पौधे अवश्य लगाएं।