Site icon Monday Morning News Network

क्या मिला पथराव करके …………?

आसनसोल में रिलौयंस मार्केट में हुयी आगजनी का किसी के द्वारा छत से लिया गया फोटो ।

जहाँ से भी रामनवमी हिंसा की ख़बरें आ रही है वहां दो चीजें कॉमन है एक डीजे और दूसरा पथराव. सबसे पहली बात तो रामनवमी के जुलुस में डीजे का कोई काम ही नहीं है .  लेकिन फिर भी यदि शामिल किये हैं तो गाने ढंग के बजाने चाहए . हमें सभी धर्मों का आदर करना चाहिए . हमें एक साथ ही रहना है और इस तरह से लड़-झगड़ का नहीं रह सकते हैं. लेकिन दूसरी तरफ यदि डीजे बज रहे हैं और आपको इससे आपत्ति थी  क्या पत्थरबाजी करने से सब ठीक हो गया. क्या पत्थरबाजी जरुरी थी. किसी भी जुलुस पर पत्थरबाजी करना मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारने के सामान होता है . जब भीड़ जुट जाती है तब पुलिस भी बैकफुट पर रहती है चाहे बिना अनुमति डीजे बजाने का मामला हो या फिर शस्त्र प्रदर्शन का. ऐसे में हजारों की संख्या में उपस्थित भीड़ पर पत्थर मार कर पत्थरबाजों को क्या मिल गया ?   उनके मन में जमी नफरत पत्थर के माध्यम बाहर निकली , लेकिन इस नफ़रत के क्षुद्र प्रदर्शन ने एक सिलसिले की शुरुआत कर दी. जो अभी तक थमी नहीं है. हिंसा करने वाले या उन्माद में बहने वाले को यह समझना चाहिए कि हर हिंसा की एक प्रतिहिंसा होती है और उसके बाद फिर प्रतिहिंसा और फिर प्रतिहिंसा.

यह लोकतन्त्र है भीड़तंत्र नहीं

प्रतिहिंसा का यह सिलसिला तबतक नहीं थमता है जब तक कोई तीसरा पक्ष इसे रोक न दे. और कानून तथा पुलिस इसी तीसरे पक्ष की भूमिका को निभाती है. यदि प्रतिहिंसा की घटना रुक नहीं रही है तो इसके लिए निसंदेह पुलिस और सरकार ही जिम्मेदार है. विपक्ष को दोष देना अपनी कमजोरी को छिपाना मात्र है. और जब लोगों को यह समझ में आ गया कि पुलिस विफल हो रही है तो फिर थोड़ी सजगता से काम लेना जरुरी है और एक कदम पीछे करना भी जरुरी है. दोषी को हर हाल में कानून ही सजा देगा किसी भी भीड़ को सजा देने का हक़ नहीं है. यह एक लोकतांत्रिक देश है कोई भीड़तंत्र नहीं । जब भीड़ लोकतंत्र पर हावी होने लगे तब सेना को बुलाने की जरुरत पड़ती है , लेकिन किसी भी सूरत भीड़ को हमारे लोकतंत्र को निगलने नहीं दिया जा सकता है. यह सरकार के साथ-साथ आम लोगों की भी जिम्मेदारी है.

Last updated: मार्च 29th, 2018 by Pankaj Chandravancee