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जानें क्यों बनाते हैं बकरीद और क्या है इसका इतिहास

भेड़ को पैदल ही कोलकाता ले जाते पशु विक्रेता

सालानपुर। ईद-उल-फितर प्रेम और मिठास घोलती है, जबकि ईद-उल-अजहाँ (बकरीद) अपने फर्ज (कर्तव्यों) के लिए कुर्बानी (बलिदान) की भावना सिखाती है, ईद-उल-अजहाँ अरबी शब्द है। इसका मतलब ‘ईद-ए-कुर्बानी यानि बलिदान की भावना, इसे ‘कुर्बानी की ईद’ और सुन्नत-ए-इब्राहीम भी कहा जाता है।

इस दिन अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने की मान्यता है, किन्तु आमतौर पर बकरों की कुर्बानी दी जाती है। इसके अलावा भैंस, बकरा, दुम्भा (भेड़) या ऊंट की भी कुर्बानी दी जाती है।

इस्लाम के जानकार बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय में इस दिन का बेहद महत्त्व है। कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम को अल्लाह ने आजमाइश (परीक्षा) के लिए हुक्म (आदेश) दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करें। हजरत इब्राहीम मुश्किल में पड़ गए कि आखिर कौन सी सबसे प्यारी चीज जो अल्लाह की राह में कुर्बान करें।

कहा जाता हैं कि फिर उन्हें अपने प्यारे बेटे हजरत इस्माइल का ख्याल आया और उन्होंने अपने बेटे को ही आल्लाह की राह में कुर्बान करने का मजबूत इरादा बना लिया। हजरत इब्राहीम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे, क्योंकि बेटे का जन्म 86 साल बाद हुआ था। अपने अजीज बेटे को कुर्बानी देते समय कहीं उनके हाथ रुक न जाएं और अल्लाह नाराज ना हो जाए इसलिए उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली। उन्होंने जैसे ही कुर्बानी के लिए हाथ से छूरा चलाया तभी छूरा को अल्लाह ने हूक्म दिया कि एक बाल भी न कट पाएं।

हजरत इब्राहीम ने जब आँखों पर बंधी पट्टी को हटाकर देखा तो उनका बेटा हजरत इस्माईल सही सलामत थे। जबकि रेत पर एक दुम्बा (भेड़), जिबाह (कटा) होकर पड़ा हुआ था।

कहा जाता है कि अल्लाह ने उनको कर्तव्य की परीक्षा में पास मान लिया और उनके बेटे हजरत इस्माइल को जीवन दान दे दिया। इसी वाक्या के बाद से ही कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ। जानवरों की कुर्बानी को अल्लाह का हुक्म और हजरत इब्राहीम का सुन्नत माना जाता है।

अरब समेत अन्य मुस्लिम देशों में दुम्बा (भेड़) और ऊंट की कुर्बानी दी जाती है, जबकि भारत में बकरे, ऊंट और भैंस की कुर्बानी दी जाती है।

शनिवार 1 अगस्त को देश भर में बकरीद मनाई जाएगी, हालांकि कोरोना महामारी के मद्देनजर सभी राज्य सरकारों ने मस्जिद में नमाज अदायगी पर पाबंदी लगा दी है, साथ ही घर पर ही बकरीद और कुर्बानी मनाने को कहा गया है।

इधर कोरोना के कारण बाजार की मंदी और यातायात असुविधा के कारण बकरे की बिक्री काफी प्रभावित हुआ है। जबकि पश्चिम बंगाल समेत कोलकाता में दुम्भा(भेड़) की आपूर्ति के लिए भारी संख्या में व्यपारी उत्तर प्रदेश और राजस्थान से इस दिनों पैदल ही यात्रा कर पहुँच रहें है।

Last updated: जुलाई 31st, 2020 by Guljar Khan